Hazrat Umar Aur Buddhi Aurat Ki Insaaf Ki Kahani
एक बार खलीफा हजरत उमर (रज़ि.अल्लाहु अन्हु) रात के समय अपनी रियाया (प्रजा) के हालात जानने के लिए गश्त पर निकले। वे हमेशा चाहते थे कि उनकी हुकूमत में कोई भी गरीब, बेसहारा या जरूरतमंद इंसान परेशान न रहे।
रात के सन्नाटे में चलते हुए उन्होंने एक टेंट (खेमे) में बैठी एक बुज़ुर्ग महिला को देखा। वह अकेली बैठी थी और काफी कमजोर और परेशान नजर आ रही थी। हजरत उमर चुपचाप उसके पास पहुंचे और पूछा:
ऐ बुज़ुर्ग अम्मा! तुम्हें उमर के बारे में क्या कहना है?
बुज़ुर्ग महिला ने गुस्से में जवाब दिया:
ख़ुदा उमर का भला न करे। उसने मेरी कभी कोई खबर नहीं ली, कभी मदद नहीं की!
हजरत उमर ने पूछा:
लेकिन अम्मा, उमर को कैसे पता चलेगा कि इस टेंट में कोई ज़रूरतमंद बुज़ुर्ग महिला रह रही है?
वह बोली:
सुब्हानअल्लाह! अगर एक आदमी को अमीर (शासक) बनाया गया है और वह अपने मुल्क के हालात से ही अनजान है, तो यह तो अफसोस की बात है!
यह सुनते ही हजरत उमर की आंखें भर आईं। उन्होंने खुद से कहा:
ऐ उमर! तुझसे तो ये बुज़ुर्ग अम्मा ज्यादा समझदार निकली।
इसके बाद उन्होंने महिला से कहा:
ऐ अल्लाह की बंदी! ये जो तकलीफ तुम्हें उमर की वजह से पहुंची है, क्या तुम इसे मुझे बेचोगी? मैं चाहता हूं कि उमर की ये गलती तुमसे खरीद लूं और खुद को अल्लाह के सामने हल्का कर सकूं।
बुज़ुर्ग महिला बोली:
क्या मुझसे मजाक कर रहे हो?
हजरत उमर ने गंभीरता से जवाब दिया:
नहीं, मैं मज़ाक नहीं कर रहा। तुम जो कीमत कहो, मैं देने को तैयार हूं।
महिला बोली:
तो फिर 50 दीनार दे दो।
इसी बीच हजरत अली (रज़ि.) और हजरत अब्दुल्ला बिन मसऊद (रज़ि.) वहां आ पहुंचे और बोले:
अस्सलामु अलैकुम, या अमीरुल मोमिनीन!
यह सुनकर बुज़ुर्ग महिला चौंक गई। वह डरते हुए बोली:
अरे! ये तो खुद अमीर-उल-मोमिनीन उमर हैं। और मैंने इन्हें क्या-क्या कह दिया!
हजरत उमर मुस्कुराए और बोले:
डर मत अम्मा, तुमने सच ही कहा।
फिर उन्होंने एक लिखित दस्तावेज तैयार किया जिसमें लिखा था:
मैं उमर बिन खत्ताब, इस महिला से उसकी शिकायत और मेरी लापरवाही का हर्जाना 50 दीनार में खरीद रहा हूं। क़यामत के दिन यह महिला उमर से कोई शिकायत नहीं करेगी।
हजरत अली और हजरत इब्न मसऊद को गवाह बनाया गया और बुज़ुर्ग महिला को 50 दीनार दे दिए गए।
फिर हजरत उमर ने अपने बेटे से कहा:
जब मैं मरूं, तो यह दस्तावेज मेरे कफ़न में रख देना। शायद अल्लाह के सामने यह मेरा बचाव बन जाए।
इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?
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एक सच्चे नेता को अपनी जनता के हालात से वाकिफ रहना चाहिए।
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इंसाफ करने के लिए ज़िम्मेदारी लेना और अपनी गलती को मानना जरूरी है।
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गरीब और मजबूर की आवाज भी बहुत कीमती होती है।
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नेतृत्व सिर्फ हुकूमत करना नहीं, बल्कि सेवा और जवाबदेही का नाम है।
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अल्लाह के सामने एक-एक बात का हिसाब होगा, इसलिए दुनिया में ही खुद को सुधारना जरूरी है।