हज़रत अली (रज़ि.) का रूहानी ख़्वाब और हज़रत उमर (रज़ि.) की तस्दीक़

जब ख्वाब और हक़ीक़त एक जैसे हो गए

हज़रत अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने हज़रत उमर फ़ारूक़ (रज़ि.) के दौर-ए-खिलाफ़त में एक अजीबो-ग़रीब ख्वाब देखा।
उन्होंने देखा कि मस्जिद-ए-नबवी में रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) फज्र की नमाज़ पढ़ा रहे हैं और हज़रत अली भी उनकी इमामत में नमाज़ अदा कर रहे हैं।

नमाज़ खत्म होने के बाद रसूलुल्लाह (स.अ.व.) मस्जिद की दीवार से पीठ लगाकर बैठ गए। इतने में एक औरत खजूरों का एक थाल (तश्तरी) लेकर हाज़िर हुई और हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) के सामने रख दिया।
आप (स.अ.व.) ने एक खजूर उठाई और हज़रत अली को दी, फिर बाकी खजूरें दूसरे नमाज़ियों में बाँट दीं।

जब हज़रत अली की नींद खुली, तो उन्होंने अपनी ज़ुबान पर उसी खजूर की मिठास को महसूस किया।
सुबह-सुबह ही वे मस्जिद-ए-नबवी पहुँचे। वहाँ देखा कि हज़रत उमर (रज़ि.) फज्र की नमाज़ पढ़ा रहे हैं।
हज़रत अली ने भी जमाअत में शरीक होकर नमाज़ अदा की।

नमाज़ के बाद हज़रत उमर मस्जिद की दीवार से पीठ लगाकर उसी तरह बैठे, जैसा कि हज़रत अली ने ख्वाब में रसूलुल्लाह को बैठे देखा था।
तभी एक औरत खजूरों का थाल लेकर आई और हज़रत उमर की खिदमत में रख दिया।
हज़रत उमर ने उस थाल से एक खजूर उठाई और हज़रत अली को दी, फिर बाकी खजूरें दूसरे नमाज़ियों को बाँट दीं।

हज़रत अली ने मुस्कराते हुए कहा: ऐ अमीरुल मोमिनीन! अगर आप मुझे एक खजूर और दे देते तो क्या जाता?

हज़रत उमर ने जवाब दिया:

“ऐ अली! अगर रात को रसूलुल्लाह (स.अ.व.) ने तुम्हें दूसरी खजूर दी होती, तो मैं भी देता। उन्होंने एक ही दी, इसलिए मैं भी वही दूँगा।”

हैरान हज़रत अली ने पूछा: आपको कैसे पता चला कि मैंने ऐसा ख्वाब देखा?

हज़रत उमर (रज़ि.) ने फ़रमाया:

“ऐ अली! मोमिन का दिल ईमान के नूर से बहुत कुछ देख लेता है।”

हमें इस वाक़िए से क्या सीख मिलती है?

यह वाक़िया हमें बताता है कि सच्चे मोमिन को अल्लाह ऐसे रूहानी इशारे देता है, जो दूसरों की निगाह से छिपे होते हैं।
हज़रत अली और हज़रत उमर के बीच यह रूहानी ताअल्लुक़, ईमान और इल्म की एक गहराई को दिखाता है – जहां ख्वाब, इरादा और अमल तीनों एक हो जाते हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top