जब एक लड़की ने दफ़ बजाया और उमर रज़ि. के आने पर छुप गई।
जब नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम किसी युद्ध से वापस तशरीफ़ लाए, तो एक लड़की ने आपके पास आकर कहा:
या रसूलल्लाह! मैंने नज़र मानी थी कि अगर अल्लाह तआला आपको युद्ध से सलामत वापस लाए तो मैं आपके सामने दफ़ बजाकर गाऊंगी।
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: अगर तुमने ऐसा वादा किया है तो अपनी नज़र पूरी कर लो।
लड़की ने खुशी से दफ़ बजाना शुरू कर दिया।
सहाबा की आमद और लड़की का व्यवहार:
कुछ ही देर में हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु तशरीफ़ लाए, फिर हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु भी। लेकिन लड़की फिर भी बिना झिझक दफ़ बजाती रही।
फिर हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु तशरीफ़ लाए। उन्हें देखते ही लड़की ने फौरन दफ़ को अपने घुटनों के नीचे छुपा लिया और चुपचाप बैठ गई।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमयह देख कर मुस्कराए और फ़रमाया:
उमर! शैतान भी तुझसे डरता है। यह लड़की मेरे सामने लगातार दफ़ बजा रही थी, लेकिन तुझे देखकर छुपा लिया।
हमें क्या सीख मिलती है?
इस वाकये से हमें यह सीख मिलती है:
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हज़रत उमर की हैबत और ईमान की ताक़त इतनी थी कि शैतान तक उनसे डरता था।
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नज़र (mannat) को निभाना शरीयत में जायज़ है जब तक वह शरीअत के दायरे में हो।
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नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने उम्मती की नियत और नज़र को मान्यता देते थे।
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एक सच्चा मोमिन अपने किरदार से ही दूसरों पर असर डाल देता है।
अगर हम भी अपने ईमान को मजबूत करें और नेक नियत रखें, तो हमारा किरदार भी लोगों के दिलों पर असर डालेगा।