हिजरत के दौरान अल्लाह की मदद और सराक़ा की हार:
जब नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ (रज़ि.) के साथ मक्का से हिजरत (प्रवास) की, तो क़ुरैश ने एक बड़ा इनाम घोषित किया – जो कोई नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और अबूबक्र (रज़ि.) को पकड़ कर लाएगा, उसे 100 ऊँट इनाम में मिलेंगे।
यह सुनकर एक मशहूर आदमी सराक़ा बिन जुहैशम ने कहा:
मैं अपने तेज़ रफ्तार घोड़े पर सवार होकर उन्हें पकड़ कर लाऊँगा।
वह अपने घोड़े को दौड़ाते हुए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और हज़रत अबूबक्र (रज़ि.) के क़रीब पहुँच गया। हज़रत अबूबक्र ने जब देखा कि सराक़ा पीछा कर रहा है, तो घबराकर बोले:
या रसूलुल्लाह ﷺ! वह हमें देख चुका है और क़रीब पहुँच गया है!
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
घबराओ मत, ऐ सिद्दीक़! अल्लाह हमारे साथ है।
जैसे ही सराक़ा और क़रीब आया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दुआ की, और उसी वक़्त सराक़ा का घोड़ा ज़मीन में धँस गया। उसके चारों पैर पेट तक रेत में धँस गए।
सराक़ा डर गया और बोला:
या मुहम्मद! मुझे और मेरे घोड़े को बचा लीजिए, मैं वादा करता हूँ कि वापस लौट जाऊँगा और जो भी आपका पीछा करने आएगा, उसे भी रोक दूँगा।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दया की और दुआ की, तो ज़मीन ने सराक़ा और उसके घोड़े को छोड़ दिया। सराक़ा वापस चला गया और नबी ﷺ के लिए रास्ता साफ़ हो गया।
हमें क्या सीख मिलती है:
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अल्लाह अपने नेक बंदों की हर मुश्किल में मदद करता है।
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नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का भरोसा अल्लाह पर अटूट था।
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दुआ में बहुत ताक़त है, जो नामुमकिन को भी मुमकिन बना देती है।
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जब इंसान हक़ को पहचान लेता है, तो उसकी सोच बदल जाती है।