हज़रत जिब्राईल की उम्र और एक रूहानी तारे का खुलासा:
इस्लामी तारीख़ में ऐसे बहुत से वाक़ियात हैं जो हमारे ईमान को मज़बूत करते हैं और रसूलुल्लाह ﷺ की शान को उजागर करते हैं। ऐसा ही एक रूहानी वाक़िया है, जिसमें नबी-ए-पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत जिब्राईल (अलैहिस्सलाम) से उनकी उम्र के बारे में सवाल किया।
एक दिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत जिब्राईल से पूछा:
ऐ जिब्राईल! तुम्हारी उम्र कितनी है?
हज़रत जिब्राईल (अलैहिस्सलाम) ने अर्ज़ किया:
या रसूलल्लाह! मेरी उम्र का मुझे तो ठीक-ठीक अंदाज़ा नहीं है, लेकिन इतना जानता हूँ कि जब मैं ‘चौथे हिजाब’ में होता हूँ, तो वहां एक रौशन ‘नूरानी तारा’ हर 70 हज़ार साल बाद चमकता है।
जिब्राईल (अ.स.) ने कहा:
अब तक मैंने उसे 72 हज़ार बार चमकते देखा है।
इस जवाब को सुनकर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुस्कुराए और फरमाया:
“मेरे रब की क़सम! वो रौशन तारा मैं ही हूँ।
यह वाक़िया नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क़दीम नूर (प्राचीन रौशनी) की गवाही देता है। इससे पता चलता है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सिर्फ़ धरती पर आने वाले आख़िरी नबी नहीं थे, बल्कि उनकी रूह को अल्लाह ने बहुत पहले ही रौशनी के रूप में पैदा किया था।
हमें क्या सीख मिलती है:
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नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रूह सबसे पहले बनाई गई थी और वह नूर का सरचश्मा हैं।
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हज़रत जिब्राईल (अ.स.) जैसे बरज़ग़र फ़रिश्ते भी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हकीकत और मक़ाम से प्रभावित हैं।
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अल्लाह तआला ने अपने नबी को ऐसा नूर बनाया जिसे सदियों से जिब्राईल देख रहे हैं।
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हमें चाहिए कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुहब्बत और अदब अपने दिलों में मज़बूत करें।