हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नर्म मिज़ाज तरबियत और इसकी असरदार ताकत:
इस्लाम धर्म के शुरुआती दौर की बात है। एक छोटे से सहाबी (नन्हे बच्चे), जो उस समय अनसार के बाग़ों के पास रहते थे, का खेल यह था कि वह खजूर के बगानों में चले जाते और खजूर खाने के लिए पेड़ों पर कंकड़ मारते थे ताकि खजूर नीचे गिर जाएं। जिन लोगों के वह बाग़ थे उन्होंने इस बच्चे की शिकायत पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सेवा में की।
शिकायत सुनकर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बच्चे को डांटा नहीं। उन्होंने उसे बड़े प्यार से बुलाया, अपने करीब बिठाया और उस पर स्नेह से हाथ फेरा। फिर बहुत नरमी से पूछा – बेटा! तुम खजूर के पेड़ पर कंकड़ क्यों मारते हो? इससे पेड़ और फसल को नुकसान होता है। यह समझाकर उन्होंने बच्चे को जाने दिया।
थोड़ी देर बाद फिर लोगों ने शिकायत की कि वह बच्चा फिर पेड़ों पर कंकड़ मार रहा है। लोग उसे दोबारा पकड़कर लाए। इस बार भी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने न तो उसे डांटा और न ही झिड़का, बल्कि प्यार से उससे पूछा – बेटे, तुम बार-बार ऐसा क्यों करते हो? बच्चे ने बहुत मासूमियत से जवाब दिया – मैं सिर्फ़ खजूर खाने के लिए ऐसा करता हूँ।
यह सुनकर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुस्कुराए और फरमाया – बेटा, जो खजूर अपने-आप नीचे गिरती हैं उन्हें उठा लिया करो, लेकिन पत्थर या कंकड़ मारकर पेड़ को नुकसान मत पहुँचाया करो। यह कहकर आपने फिर उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और उसके लिए दुआ की।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इस अपार मोहब्बत भरी सीख और दुआ का बच्चे पर इतना असर हुआ कि उसने ज़िंदगी भर दोबारा वैसा काम नहीं किया। इस घटना से पता चलता है कि इस्लाम सिर्फ़ सख्ती और आदेश नहीं देता बल्कि बच्चों की परवरिश प्यार, दया, ममता और सम्मान के साथ करता है। आहिस्ता और नरमी से समझाई गई बात दिल पर गहरी असर डालती है और इंसान अपने आप सही रास्ते की तरफ बढ़ता है।
इस वाकिए से हमे क्या सीख मिलती है:
इस वाक़िये से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हर हाल में बच्चों को प्यार, स्नेह और नरमी से समझाना चाहिए। कड़ाई करने से बेहतर है कि हम उन्हें इज़्ज़त दें और दुआ के साथ उनकी सही रूप में तरबियत करें। इस्लाम की असल तालीम भी यही है कि मोहब्बत से लोगों को अच्छा बनाओ।