हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दया और इंसानियत भरी अद्भुत सीख:
इस्लाम के आरंभिक दौर की एक रोचक घटना है। एक बार एक देहाती व्यक्ति (बदू) हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में आया। उस समय आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद-ए-नबवी में तशरीफ़ फरमा थे। वह देहाती मस्जिद के नियम और शिष्टाचार से अनजान था। अचानक उसे पेशाब की तलब हुई, और अनजाने में वह वहीं मस्जिद के अंदर उठ खड़ा हुआ और पेशाब करने लगा।
यह देखकर मस्जिद में मौजूद लोग गुस्से में आ गए और उसे पकड़कर सज़ा देने के लिए दौड़ पड़े। लेकिन नबी-ए-पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तुरंत सबको रोका और फ़रमाया – उसे जाने दो, परेशान मत करो। पानी का एक डोल लाओ और जहां उसने पेशाब किया है वहाँ बहा दो।
फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म दिया कि उस जगह पर बस पानी डालकर साफ कर दिया जाए। आगे फ़रमाया – अल्लाह ने तुम्हें लोगों पर सख्ती करने के लिए नहीं बल्कि आसानी देने के लिए भेजा है।
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की यह रहमदिली देखकर वह देहाती बहुत प्रभावित हुआ। उसे महसूस हुआ कि इस्लाम में न तो कठोरता है और न ही बेइज्ज़ती, बल्कि यह दया, क्षमा और सहजता का मजहब है। इस घटना ने उसके दिल में ज्ञान और सम्मान पैदा कर दिया और वह इस्लाम की उन्नति और तहज़ीब से प्रभावित हो गया।
यह वाक़िया हमें बताता है कि गलत कार्य करने वाले व्यक्ति को डांटना या मारना नहीं चाहिए, बल्कि समझदारी, धैर्य और अच्छे व्यवहार से समझाना चाहिए ताकि वह दिल से सीखे और सुधार की तरफ आए। इस्लाम की असल तालीम नरमी, माफी और इंसानियत को बढ़ावा देती है।
हमे इस वाकिए से सीख मिलती है:
इस वाक़िये से हम यह सीखते हैं कि हमें दूसरों की गलतियों पर सख़्ती नहीं करनी चाहिए, बल्कि बुद्धिमानी और करुणा से पेश आना चाहिए। इस्लाम परेशान करने वाला नहीं, बल्कि आसानी और सहूलियत का मज़हब है।