सब्र, माफ़ी और इंसानियत का वह सबक जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने अमल से दिया:
इस्लाम के प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अल्लाह ने सारी कायनात के लिए रहमत बनाकर भेजा। आपकी जिंदगी में सब्र, दया और इंसाफ के ऐसे अनमोल नमूने मिलते हैं जो आज भी इंसानियत के लिए मशाल-ए-राह हैं।
हज़रत अनस बिन मालिक रज़ि॰ बचपन से नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख़ादिम रहे। वे बयान करते हैं कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम किसी पर अपने निजी कामों के लिए कभी नाराज़ नहीं होते थे। अगर कोई गलती करता, तो आप मुस्कुराकर कहते –
अगर मुझे क़यामत के बदले का डर ना होता तो मैं तुम्हें इस मिस्वाक से मारता।
यह जुमला गुस्से से नहीं बल्कि मोहब्बत से भरा हुआ होता था। भी इंसानियत के लिए मशाल-ए-राह हैं।
एक बार नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत अनस को किसी काम से भेजा। रास्ते में वे बच्चों को खेलते देख रुक गए और खेल में खो गए। अचानक पीछे से किसी ने गर्दन पकड़ी। पीछे देखा तो खुद रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुस्कुरा रहे थे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया –
अनस! अब काम करने जा रहे हो न?
इतनी नरमी और मोहब्बत देखकर हज़रत अनस शर्मिंदगी से रो पड़े और कहा कि फिर कभी आपकी किसी बात से इनकार नहीं किया।
ताएफ में पत्थरों की बारिश और सब्र का समंदर:
जब मक्का वालों ने इस्लाम को नहीं स्वीकारा तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ताएफ शहर पहुँचे। वहाँ के सरदारों ने अवाम को भड़काया। उन्होंने पत्थरों और कीचड़ से आपका पीछा किया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जिस्म से खून बह निकला, पेट और पांव तक जख़्मी हो गए।
हज़रत ज़ैद रज़ि॰ ने आपको कंधे पर उठाकर एक बाग़ में ले जाकर पानी से होश में लाया। इतने दर्द के बावजूद आपने बददुआ नहीं की बल्कि फ़रमाया –
अगर ये आज ईमान नहीं लाते तो उम्मीद है इनकी औलाद एक दिन कलिमा पढ़ेगी।
जंग-ए-उहुद और बद्दुआ की जगह दुआ:
उहुद की जंग में जब आपके दांत मुबारक टूट गए और चेहरा ज़ख़्मी हो गया, सहाबा ने अर्ज़ की – या रसूलल्लाह! इन लोगों को बददुआ दीजिए।
लेकिन आपने फ़रमाया –
मैं बददुआ देने नहीं बल्कि रहमत बनकर आया हूँ।
और दुआ की –
ऐ अल्लाह! मेरी क़ौम को हिदायत दे, ये मुझे जानते नहीं।
हमें इस वाक़िये से क्या सीख मिलती है?
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सब्र ही इंसान की असली ताक़त है।
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नफरत और सख्ती की जगह मोहब्बत और माफ़ी अपनाएँ।
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नाराज़गी में भी विनम्रता और नरमी रखना अल्लाह के बंदों की खूबी है।
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इस्लाम इंसानियत, दया और रहम का मज़हब है।