छिपी हुई नेकियाँ – जो अल्लाह की नज़र में ऊँची होती हैं:
मदीना मुनव्वरा के आसपास एक अंधी और बूढ़ी औरत रहती थी। उसका इस दुनिया में कोई अपना नहीं था — न बेटा, न भाई, न रिश्तेदार। वह बेहद लाचार और गरीब थी। हज़रत उमर फ़ारूक़ (रज़ि.) जो उस समय मुसलमानों के खलीफा थे, रात के वक्त चुपचाप उसके घर जाते और ज़रूरत का पानी भर देते, घर का झाड़ू-पोछा कर देते और जितना हो सकता उसकी मदद कर आते।
एक रात जब वह हमेशा की तरह उस बूढ़ी की मदद करने पहुँचे तो हैरान रह गये — क्योंकि सारा काम पहले से किसी और ने कर दिया था। वह सोच में पड़ गये कि आख़िर वह कौन है जो उनसे पहले ही आकर इस बूढ़ी के काम कर जाता है।
दूसरी रात वह थोड़ा जल्दी पहुँचे मगर तब भी वही मामला हुआ — काम पहले ही निपट चुका था।
अब हज़रत उमर (रज़ि.) को इस रहस्यमयी नेक इंसान को जानने की उत्सुकता हुई।
तीसरी रात वह और ज्यादा जल्दी पहुँचे और एक तरफ छिपकर इंतज़ार करने लगे। कुछ ही देर बाद एक व्यक्ति आया, उसने बूढ़ी का सारा काम किया — पानी भरा, झाड़ू लगाया और फिर चुपचाप चल दिया।
जब हज़रत उमर ने नज़दीक जाकर देखा तो दंग रह गये कि यह कोई और नहीं बल्कि खलीफ़ा-ए-मुस्लिमीन हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ (रज़ि.) थे!
हज़रत उमर की आँखों में आँसू आ गये — वह सोचने लगे कि इस ऊँचे दर्जे वाला इंसान जो मुसलमानों का सरदार है, वो किस तरह गुमनामी में रात के अंधेरे में एक बूढ़ी औरत की
हमें इस वाक़िए से क्या सीख मिलती है?
-
असल अच्छाई वही है जो छुपकर की जाए, केवल अल्लाह की रज़ा के लिए।
-
बड़े से बड़ा ओहदा भी इंसान को इंसानियत और सेवाभाव से नहीं रोकता।
-
इस्लाम बराबरी, सेवा और रहम का धर्म है — और सहाबा इसकी ज़िंदा मिसाल थे।