जब ताबूक के जिहाद में हज़रत अबूबक्र (रज़ि.) ने सारा माल लुटा दिया

ईमान की दौलत – जो खज़ाने से भी ज़्यादा क़ीमती है:

ग़ज़वा-ए-तबूक इस्लामी इतिहास के सबसे कठिन और आज़माइशी युद्धों में से एक था। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब सहाबा से फ़रमाया कि अल्लाह की राह में जिहाद के लिए तैयार हो जाओ, तो वह वक्त बहुत तंगी, गर्मी और अकाल का था। ऐसे हालात थे कि दो-दो आदमी सिर्फ़ एक खजूर पर गुज़ारा कर रहे थे, दूरी लंबी थी, दुश्मन ताक़तवर और बड़ी तादाद में थे।

इन मुश्किल हालात में मुसलमानों ने अपना सब कुछ लुटा दिया। सबसे आगे बढ़कर हज़रत उस्मान (रज़ि.) ने 10 हज़ार मुजाहिदीन का सामान और 10 हज़ार दीनार इस जंगी मुहिम में खर्च कर दिए।

लेकिन असल ईमान और मोहब्बत का मंज़र तब सामने आया जब हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ (रज़ि.) ने इस जंगी एलान पर अपना पूरा घर-बार लाकर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में पेश कर दिया।

हज़रत उमर (रज़ि.) फ़रमाते हैं – उस दिन मेरे पास भी कुछ माल था। मैंने सोचा कि आज मैं इतनी क़ुर्बानी दूँ कि अबू बकर से आगे बढ़ जाऊँ।
वह अपनी पूरी संपत्ति को दो हिस्सों में बाँटकर आधा घर में रख आए और आधा लेकर हाज़िर हुए। वह बड़े खुश थे कि शायद आज वह अबू बकर से आगे निकल जाएँगे।

मगर जब उन्होंने देखा कि हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ (रज़ि.) अपने घर का पूरा माल, एक दिरहम भी छोड़े बिना, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हवाले कर चुके हैं, तो वह हैरान रह गए। उन्होंने माना कि अबू बकर की मोहब्बत का मुक़ाबला करना नामुमकिन है।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मोहब्बत भरे अंदाज़ में पूछा,

अबू बकर! सब कुछ यहीं ला दिए हो, घर वालों के लिए क्या छोड़ आए हो?
हज़रत सिद्दीक़ ने जवाब दिया:
मैं घर वालों के लिए अल्लाह और उसके रसूल को छोड़ आया हूँ।

कुछ ही देर बाद जिब्रईल (अलैहिस्सलाम) नाज़िल हुए और कहा:
या रसूल अल्लाह! अल्लाह तआला अबू बकर को सलाम कहता है और फ़रमाता है – उनसे पूछिए, क्या वे मुझसे राज़ी हैं या नाराज़?

जब यह पैग़ाम सुनाया गया, तो हज़रत अबू बकर (रज़ि.) रोने लगे और बार-बार कहते गए:

क्या मैं अपने रब से नाराज़ हो सकता हूँ? मैं अपने रब से राज़ी हूँ, राज़ी हूँ, राज़ी हूँ।

हमें इस वाक़िए से क्या सीख मिलती है?

  • सच्चा मोमिन वह है जो अपनी जान–माल सब कुछ अल्लाह की राह में कुर्बान कर दे।

  • ईमानदारियों की असली कसौटी मुसीबत के वक़्त होती है।

  • अल्लाह और उसके रसूल पर भरोसा ही सबसे बड़ा सहारा है।

  • इस्लाम में दिल की क़ुर्बानी खज़ानों से बढ़कर मानी जाती है।

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