जब हिजरत की रात हज़रत अबूबक्र (रज़ि.) ने जान देकर रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हिफ़ाज़त की:
इस्लाम के शुरुआती दौर में जब मक्का में क़ुरैश काफिरों ने मुसलमानों पर जुल्म की इंतहा कर दी, तो अल्लाह तआला ने अपने प्यारे रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मक्का से हिजरत (मदीनाः की ओर पलायन) करने का आदेश दिया।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह बात अपने सबसे प्यारे साथी हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ (रज़ियल्लाहु अन्हु) को बताई और फ़रमाया कि मैं जल्द ही मक्का से निकल रहा हूँ।
अबूबक्र (रज़ि.) ने विनती भरे अंदाज़ में अर्ज़ किया —
या रसूलुल्लाह! मेरे माँ-बाप आप पर क़ुर्बान हों, मुझे भी अपने साथ ले चलिए।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुस्कुराए और फ़रमाया — तुम मेरे हमसफ़र हो।
हिजरत की रात का करिश्मा
काफिरों ने उस रात हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को शहीद करने के लिए उनके घर को चारों तरफ से घेर लिया था, लेकिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमने सूरह ‘यासीन की तिलावत करते हुए उनके बीच से निकलकर अल्लाह के फ़रिश्तों की हिफाज़त में बाहर तशरीफ़ लाए — और सीधे अबूबक्र (रज़ि.) के घर पहुँचे।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया —
अबूबक्र! अभी और इसी वक़्त हमको हिजरत का हुक्म हुआ है।
यह सुनकर अबूबक्र (रज़ि.) की आँखों में ख़ुशी के आँसू आ गए। वे फ़ौरन तैयार होकर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ हो लिये।
रास्ते भर जान की परवाह नहीं… सिर्फ़ हुज़ूर की सलामती की फ़िक्र:
सफ़र शुरू हुआ। अबूबक्र कभी हुज़ूर से आगे चलते, कभी पीछे… कभी दायें और कभी बायें।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा:
अबूबक्र! तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?
उन्होंने अर्ज़ किया:
या रसूलुल्लाह! मुझे डर है कहीं कोई दुश्मन पीछा करते हुए आए या सामने से हमला करे। मैं चाहता हूँ कि हर वार पहले मुझ पर हो — आप पर कुछ न आने पाए।
ग़ार-ए-सूर का वाक़िया – जब सिद्दीक़ ने अपनी एड़ी से बिल बंद किया:
चलते-चलते दोनों सूर की पहाड़ी (ग़ार-ए-सूर) पहुँचे। अबूबक्र (रज़ि.) ने निवेदन किया —
या रसूलुल्लाह! पहले मुझे अंदर जाने दें। मैं ग़ार को साफ कर लूँ ताकि कोई ज़हरीला जानवर आपको तकलीफ़ न दे।
वे गुफा के अंदर घुसे और सब जगह कपड़ा लगा-लगाकर हर बिल बंद करते गए। आख़िर में एक बड़ा बिल बच गया। कपड़ा ख़त्म होने के कारण उन्होंने अपनी एड़ी उस बिल पर रख दी, यह सोचकर कि मुझे जो तकलीफ़ पहुँचे मंज़ूर है पर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कुछ न हो।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अंदर तशरीफ़ लाये और अपना मुबारक सर अबूबक्र की गोद में रखकर आराम से सो गये। उसी बिल में से एक ज़हरीले साँप ने अबूबक्र को काट लिया। तकलीफ से उनके आँसू निकल पड़े, लेकिन उन्होंने हिलना तक गवारा नहीं किया कि कहीं रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नींद में खलल न पड़े।
आँसू उनके गाल से होकर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चेहरे पर पड़े। हुज़ूर जागे और बोले —
अबूबक्र, क्यों रो रहे हो?
उन्होंने बताया कि उन्हें साँप ने काट लिया है। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी लार मुबारक उस ज़हर वाली जगह पर लगाई — और अल्लाह के हुक्म से पूरा ज़हर उतर गया, दर्द जाता रहा।
अल्लाह की मदद – पेड़ और मकड़ी का जाला:
जब दोनों गुफा में दाख़िल हो गये तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अल्लाह के हुक्म से गुफा के मुँह पर खड़े एक पेड़ को बुलाया। वो पेड़ खिसक कर गुफा के दरवाज़े पर आ गया। उसी पल अल्लाह तआला ने एक मकड़ी भेजी जिसने पेड़ की शाखों के बीच जाला बुन दिया — लगता था मानो सदियों से यहाँ कोई नहीं गया।
उधर मक्का के काफ़िर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का पीछा करते हुए गुफा तक पहुँचे। एक खोजी ने कहा — यहाँ तक तो निशान हैं, लगता है वे यहीं अंदर बैठे हैं।
लेकिन दूसरे बोले —
क्या तुम पागल हो? अगर कोई अंदर गया होता तो ये ताज़ा मकड़ी का जाला और पेड़ की शाखाएँ टूटी-पड़ी होतीं। ये तो साफ है कि अंदर कोई नहीं है।
इस तरह वे मायूस होकर लौट गए।
हमें इस वाक़िए से क्या सीख मिलती है?
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रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मोहब्बत में जान देना ही सच्चा ईमान है।
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अल्लाह अपने नेक बन्दों की हिफाजत ऐसे तरीक़े से करता है जो इंसानों की समझ से परे है।
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कठिन समय में तवक़्कुल यानी अल्लाह पर भरोसा सबसे बड़ी ताक़त है।
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सच्चे दोस्तहर हाल में साथ निभाते हैं – जान देकर भी।