जब हज़रत ईसा (अ.स.) ने अपने नबी होने का पहला करिश्मा दिखाया:
हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) अभी छोटे बच्चे ही थे जब वो अपनी मां हज़रत मरयम (अलैहा सलाम) के साथ एक शहर से गुज़रे। वहां उन्होंने देखा कि एक भीड़ एक महल के सामने जमा है। हज़रत ईसा (अ.स.) ने मां से पूछा कि ये लोग किसलिए इकट्ठा हुए हैं?
तब लोगों ने बताया कि राजा की पत्नी को बच्चा नहीं हो रहा और वह दर्द में है। सब लोग अपने-अपने मूर्तियों से दुआ कर रहे हैं ताकि बच्चा हो जाए।
इस पर हज़रत ईसा (अ.स.) ने कहा, अगर मेरा हाथ उस औरत के पेट पर रख दिया जाए, तो बच्चा पैदा हो जाएगा।
यह सुनकर लोग उन्हें राजा के पास ले गए।
हज़रत ईसा (अ.स.) ने राजा से कहा, अगर मैं बता दूं कि बच्चे का लिंग क्या है और फिर मेरी दुआ से बच्चा सही सलामत पैदा हो जाए तो क्या आप एक अल्लाह पर ईमान लाएंगे?
राजा ने हामी भरी।
सच्ची नबूवत की पहचान
हज़रत ईसा (अ.स.) ने कहा, उसके पेट में लड़का है, जिसके गाल पर काला तिल और पीठ पर सफेद तिल है।” फिर उन्होंने कहा, “ऐ बच्चे! उस अल्लाह के वास्ते बाहर आ जा जिसने सारी मख़लूक़ को पैदा किया।
जैसे ही उन्होंने ये कहा, बच्चा फौरन पैदा हो गया। लोग हैरान रह गए क्योंकि ठीक वैसा ही लड़का पैदा हुआ जैसा हज़रत ईसा (अ.स.) ने बताया था।
राजा तो इस करिश्मे से बहुत प्रभावित हुआ और मुसलमान होने को तैयार था। लेकिन उसकी प्रजा ने उसे मना कर दिया। उन्होंने कहा कि ये सब जादू है और इस तरह राजा ने हज़रत ईसा (अ.स.) की बात को नकार दिया।
इस वाकिए से हमे क्या सीख मिलती है:
इस वाक़िये से हमें यह सीख मिलती है कि नबी का हर करिश्मा अल्लाह के हुक्म से होता है। अगर दिल में सच्चा ईमान हो तो करिश्मा पहचान में आ जाता है, लेकिन अगर दिल पर ज़िद और घमंड हो तो सच्चाई भी झूठ लगती है।