जब एक बच्चे ने उस्ताद को पढ़ा दिया:
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम जब छोटे और चलने-फिरने के काबिल हो गए, तो उनकी वालिदा हज़रत मरयम अलैहिस्सलाम उन्हें एक उस्ताद के पास लेकर गईं ताकि वे इल्म (ज्ञान) सीख सकें। उन्होंने उस्ताद से कहा, इस बच्चे को पढ़ाइए।
उस्ताद ने हज़रत ईसा से कहा, बेटा! बिस्मिल्लाह पढ़ो।
हज़रत ईसा ने जवाब दिया: बिस्मिल्लाह-इर-रहमान-इर-रहीम
फिर उस्ताद ने कहा, अब अलिफ, बा, जीम, दाल पढ़ो।
ईसा अलैहिस्सलाम ने मुस्कराकर पूछा, क्या आप जानते हैं कि इन अक्षरों (हुरूफ़) का मतलब क्या है?
उस्ताद ने जवाब दिया, नहीं, मुझे इनका मतलब नहीं मालूम।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने कहा:
-
अलिफ (ا) से मुराद है — अल्लाह
-
बा (ب) से मुराद है — अल्लाह की बहार और बरकत
-
जीम (ج) से मुराद है — अल्लाह का जलाल (प्रताप)
-
दाल (د) से मुराद है — अल्लाह का दीन (धर्म)
ये सुनकर उस्ताद दंग रह गया। उसने हज़रत मरयम से कहा,
आप इस बच्चे को वापस ले जाइए, यह किसी उस्ताद का मोहताज नहीं है। मैं इसे क्या सिखाऊँ, जबकि यह खुद मुझे पढ़ा रहा है।
हमें क्या सीख मिलती है?
इस वाकिए से हमें यह सिखने को मिलता है कि अल्लाह तआला जिसे चाहे, बचपन से ही इल्म और हिकमत से नवाज़ देता है। हज़रत ईसा अ.स. की नबूवत की निशानियाँ बचपन से ही ज़ाहिर थीं। यह हमें यह भी सिखाता है कि असली इल्म वही है जो अल्लाह की तरफ से हो, और जिस पर अक्ल भी हैरान रह जाए।