ज़करिया (अ.स) की दुआ और हज़रत याह्या की पैदाइश:
हज़रत मरयम (अ.स) की माँ ने जब वो हामिला थीं, अल्लाह से यह नज़र मानी कि जो भी उनके पेट में है, उसे अल्लाह की राह में वक्फ़ करेंगी। जब बच्ची पैदा हुई तो उसका नाम “मरयम” रखा गया और उसे बैतुल मुक़द्दस (अल-अक्सा मस्जिद) में इबादत और मस्जिद की सेवा के लिए भेज दिया गया।
मरयम (अ.स) की देखरेख हज़रत ज़करिया (अ.स) के जिम्मे लगी, जो उनके रिश्तेदार भी थे। उन्होंने मस्जिद में उनके लिए एक अलग कमरा बनवाया, जहां सिर्फ वही अंदर आ सकते थे। जब भी वह मरयम (अ.स) के कमरे में आते, तो वह हैरान रह जाते — वहां हर मौसम के फल मौजूद होते, चाहे वो मौसम हो या ना हो।
हज़रत ज़करिया (अ.स) ने पूछा: ऐ मरयम! ये फल कहाँ से आते हैं? मरयम (अ.स) ने जवाब दिया: ये अल्लाह की तरफ़ से आते हैं। वह जिसे चाहे, बिना हिसाब देता है। इस करामात को देखकर ज़करिया (अ.स) का दिल भी जाग उठा। उन्होंने वहीं बैठकर दुआ की: ऐ मेरे रब! मुझे भी एक नेक औलाद अता कर, बेशक तू दुआ सुनने वाला है।
अल्लाह ने उनकी दुआ कबूल की और जिब्रील (अ.स) के ज़रिए उन्हें खुशखबरी दी कि उनके घर एक बेटा पैदा होगा जिसका नाम ‘याह्या’ होगा — एक नेक, पाक, और नबी बनने वाला बच्चा।
इस वाक़िए से हमें क्या सीख मिलती है:
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अल्लाह की राह में की गई नियत कभी ज़ाया नहीं जाती।
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अल्लाह जब देना चाहता है तो मौसम और हालात की परवाह नहीं करता।
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दुआ में बहुत ताक़त होती है, और अल्लाह हर दुआ सुनता है।
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करामात और अजूबे सिर्फ़ अल्लाह की मरज़ी से होते हैं।