हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और बूढ़ी औरत की दुआ का वाक़िया

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और हज़रत यूसुफ़ की क़ब्र का वाक़िया:

बनी इस्राईल को जब अल्लाह ने फिरऔन के ज़ुल्म से निजात दी और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की रहनुमाई में दरिया पार करने का हुक्म दिया, तो एक अजीब वाक़िया पेश आया।

दरिया किनारे अजीब हालात

जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम अपनी क़ौम के साथ दरिया किनारे पहुँचे और दरिया पार करने का इरादा किया, तो अचानक जानवरों के मुँह अल्लाह के हुक्म से पलट गए और वो आगे बढ़ने की बजाय पीछे लौटने लगे। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम हैरान होकर अल्लाह से दुआ करने लगे:
ऐ मेरे रब! ये क्या मामला है?

अल्लाह का हुक्म और हज़रत यूसुफ़ की क़ब्र

अल्लाह तआला ने फ़रमाया: तुम हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की क़ब्र के पास हो। उनका मुबारक जिस्म अपने साथ ले लो, तभी दरिया तुम्हारे लिए रास्ता खोलेगा।
लेकिन हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को हज़रत यूसुफ़ की क़ब्र का स्थान मालूम नहीं था।

बुज़ुर्ग औरत की शर्त

मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम से पूछा कि क्या किसी को यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की क़ब्र का पता है? तो मालूम हुआ कि एक बूढ़ी औरत को इसका इल्म है।
जब उस औरत से पूछा गया, तो उसने कहा: खुदा की क़सम! मैं तब तक नहीं बताऊँगी जब तक कि मेरी एक शर्त पूरी न कर दी जाए।
मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: ठीक है, तू जो माँगेगी तुझे दिया जाएगा।

औरत की दुआ और अल्लाह की मंज़ूरी

बूढ़ी औरत ने कहा: मैं ये चाहती हूँ कि जन्नत में मैं आपके साथ उसी दर्जे में रहूँ जहाँ आप होंगे।
मूसा अलैहिस्सलाम ने पहले उसे समझाया कि इतनी बड़ी चीज़ मत माँगो, बल्कि कोई आसान दुआ कर लो। लेकिन वो औरत अपने कहे पर अड़ी रही।
आख़िरकार अल्लाह तआला ने वह़ी के ज़रिये हज़रत मूसा को हुक्म दिया: मूसा! जो ये औरत माँग रही है, उसे दे दो। इसमें तुम्हारा कुछ नुकसान नहीं।

क़ब्र का मालूम होना और दरिया का पार होना

चुनाँचे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे ये खुशख़बरी दे दी कि जन्नत में वो उनकी रफ़ाक़त (साथ) में रहेगी। तब उस औरत ने हज़रत यूसुफ़ की क़ब्र का पता बता दिया।
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने हज़रत यूसुफ़ का मुबारक जिस्म निकालकर अपने साथ लिया और फिर अल्लाह के करम से दरिया दो हिस्सों में बंट गया।
बनी इस्राईल सक़ून से दरिया पार कर गए और फिरऔन अपनी फ़ौज समेत डूब गया।

हमें इस वाक़िये से क्या सीख मिलती है?

  1. अल्लाह के हुक्म के बिना कोई काम पूरा नहीं हो सकता।

  2. बुज़ुर्गों का इल्म और तजुर्बा बहुत क़ीमती होता है।

  3. अल्लाह अपने नेक बंदों की ख्वाहिशें पूरी करता है।

  4. सच्चे ईमान और सब्र के साथ माँगी गई दुआ कभी बेकार नहीं जाती।

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