फ़िरऔन की तबाही:
बनी इस्राईल और फ़िरऔन की कहानी कुरान और इस्लामी इतिहास में बार-बार बयान की गई है। यह वाक़िया फ़िरऔन की नाशुक्री और उसके अंजाम को बयान करता है।
फ़रिश्ता जिब्राईल का सवाल
एक बार जिब्राईल अलैहिस्सलाम फ़िरऔन के पास एक इस्तिफ्ताह (सवालनामा) लेकर आए। उस पर लिखा था:
एक ऐसा ग़ुलाम जो अपने मालिक के माल और नेमतों में पला-बढ़ा हो, लेकिन बाद में उसी मालिक का इनकार कर दे और खुद को मालिक कहने लगे, तो उसके लिए क्या सज़ा होनी चाहिए?
फ़िरऔन का जवाब
फ़िरऔन ने यह सवाल पढ़ा और घमंड से जवाब लिखा:
जो ग़ुलाम अपने आका की नेमतों का इनकार करे और उसके मुकाबले में खड़ा हो, उसकी सज़ा यही है कि उसे दरिया (समंदर) में डुबो दिया जाए।
अंजाम का दिन
जब अल्लाह का वादा पूरा हुआ और फ़िरऔन अपने र के साथ दरिया में उतरा तो समंदर की लहरों ने उसे घेर लिया। उसी वक़्त जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने वही कागज़ (फ़रऔन का लिखा हुआ फ़तवा) उसके सामने कर दिया।
फ़िरऔन ने अपनी ही लिखी हुई बात देखी और पहचान लिया कि उसने अपने हाथों से अपनी तबाही का फ़ैसला खुद लिखा था।
इस वाक़िए से हमें क्या सीख मिलती है?
इस वाक़िए से हमें यह सबक मिलता है कि अल्लाह की नेमतों का इनकार करना और घमंड में उसके मुकाबले में खड़ा होना इंसान को बर्बादी की तरफ ले जाता है। नाशुक्री और तकब्बुर इंसान के लिए सब से बड़ी तबाही है। अल्लाह ही असली मालिक है और उसी की इबादत करनी चाहिए।