सैयदज़ादी की सच्चाई और गैर मुस्लिम का ईमान

सच्चे मुस्लिम की पहचान और एक विधवा का किस्सा:

इस्लामी वाक़ियात इंसान के दिल को बदलने और सच्चाई की राह दिखाने के लिए बहुत अहमियत रखते हैं। यह कहानी भी हमें यही सिखाती है कि असली मुस्लिम कौन है और झूठे दावों का क्या अंजाम होता है।

भूखी सैयदज़ादी और उसके बच्चे

समरकंद शहर में एक गरीब विधवा सैयदज़ादी अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ रहती थी। उसकी हालत बहुत खराब थी। एक दिन जब बच्चे भूख से बिलखने लगे तो वह उन्हें लेकर शहर के एक अमीर मुसलमान के पास पहुँची और उससे कहा:


मैं एक सैयदज़ादी हूँ, मेरे बच्चे भूखे हैं, कृपया उन्हें खाना खिला दीजिए।

अमीर मुसलमान का घमंड

वह अमीर मुसलमान आदमी जो सिर्फ नाम का मुसलमान था और धन के नशे में चूर था, उसने ताना मारते हुए कहा:
अगर तुम सच में सैयदज़ादी हो तो कोई सबूत पेश करो। मैं केवल ज़ुबानी दावे पर विश्वास नहीं करता।

बेचारी विधवा ने रोते हुए कहा: मैं गरीब हूँ, मेरे पास अपनी पहचान का सबूत कहाँ से लाऊँ? मेरी बात पर भरोसा कर लो।
लेकिन उस अमीर ने उसे भगा दिया।

गैर-मुस्लिम का इंसानीपन

निराश होकर वह विधवा अपने बच्चों को लेकर एक अमीर मजूस (गैर-मुस्लिम) के पास पहुँची और अपनी कहानी सुनाई।
मजूस ने कहा: हालाँकि मैं मुसलमान नहीं हूँ, लेकिन मैं तुम्हारी इज़्ज़त करता हूँ। तुम मेरे घर में रहो, मैं तुम्हारे खाने-पीने और कपड़ों की जिम्मेदारी लेता हूँ।

वह गैर-मुस्लिम आदमी विधवा और उसके बच्चों को अपने घर ले गया, उन्हें खाना खिलाया और बड़ी इज्ज़त से रखा।

मुसलमान का सपना और शर्मिंदगी

रात को वही नाम का मुसलमान अमीर सोया और उसने सपना देखा। उसने देखा कि हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक बहुत बड़े नूरानी महल के पास बैठे हैं।
उसने पूछा: या रसूल अल्लाह! यह महल किसका है?
हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जवाब दिया: यह मुसलमान के लिए है।
वह बोला: मैं भी मुसलमान हूँ, तो यह मुझे दे दीजिए।

हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:
अगर तुम मुसलमान हो तो अपने इस्लाम की कोई दलील (सबूत) पेश करो। जब मेरी बेटी (सैयदज़ादी) तुम्हारे पास आई तो तुमने उससे सबूत माँगा था। अब तुम बिना सबूत के इस महल में कैसे दाखिल हो सकते हो?

यह सुनकर वह घबराकर रोने लगा और उसकी नींद खुल गई।

ग़ैर-मुस्लिम का ईमान लाना

सुबह होते ही वह अमीर सैयदज़ादी की तलाश में निकला। आखिरकार उसे पता चला कि वह विधवा उस मजूस के घर में ठहरी है।
वह मजूस के पास पहुँचा और कहा: मैं तुम्हें एक हज़ार रुपया देता हूँ, वह सैयदज़ादी मुझे दे दो।

मजूस ने हँसकर कहा:
क्या मैं वह नूरानी महल एक हज़ार रुपये में बेच दूँ? कल रात हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे सपने में आए और मुझे कलिमा पढ़वाकर इस्लाम कबूल कराया। उन्होंने मुझे खुशखबरी दी है कि तुम और तुम्हारा परिवार जन्नत में जाएगा। अब मैं भी मुसलमान हूँ और तुम्हारे लालच का शिकार नहीं बनूँगा।

इस तरह अल्लाह ने एक मजूस को सच्चे ईमान की रोशनी दी, जबकि नाममात्र मुसलमान शर्मिंदा होकर रह गया।

इस वाक़िए से सीख

यह वाक़िया हमें सिखाता है कि असली मुस्लिम वही है जो अपने कर्मों से अपने इस्लाम को साबित करे, न कि केवल नाम से।
गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करना ही सच्चा ईमान है। अल्लाह की नज़रों में अमल और नेकदिली की कीमत है, न कि केवल ज़ुबान के दावे।

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