इल्मे-हदीस और हज़रत अबुल हसन खर्कानी की करामत:
इस्लामी वाक़ियात में हमें कई ऐसे किस्से मिलते हैं जो इल्म की गहराई और अल्लाह के नेक बंदों की करामत को उजागर करते हैं। यह वाक़िया हज़रत अबुल हसन खर्कानी रहमतुल्लाह अलैह से जुड़ा है, जिनका इल्म और तवाज़ो आज भी मिसाल है।
इल्मे-हदीस का सवाल
एक बार एक शख्स हज़रत अबुल हसन खर्कानी रहमतुल्लाह अलैह के पास हदीस पढ़ने आया। उसने आदर से सवाल किया:
आपने हदीस कहाँ से पढ़ी है?
हज़रत ने जवाब दिया:
सीधे हज़रत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से।
यह सुनकर उस शख्स को यक़ीन न हुआ।
हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का सपना
उस रात वही शख्स सोया तो उसने सपना देखा। उसमें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ लाए और फ़रमाया:
अबुल हसन ने सच कहा है। हदीस मैंने ही उसे पढ़ाई है।
सपना देखकर उसका दिल यक़ीन से भर गया। सुबह होते ही वह फिर हज़रत अबुल हसन की खिदमत में हाज़िर हुआ और हदीस पढ़ने लगा।
हदीस की पहचान
जब वह शख्स हदीस पढ़ रहा था तो कुछ जगहों पर हज़रत अबुल हसन ने फ़रमाया:
यह हदीस रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से रावी नहीं है।
वह हैरान होकर बोला:
आपको कैसे मालूम होता है कि यह हदीस सही नहीं?
हज़रत ने जवाब दिया:
जब तुम हदीस पढ़ते हो तो मेरी नज़र हज़रत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमके चेहर-ए-मुबारक पर होती है। अगर किसी हदीस पर उनके आबरो (भौंह) पर शिकन पड़ती है, तो मैं समझ जाता हूँ कि वह हदीस सही नहीं है।
इस वाक़िए से सीख
इस वाक़िए से हमें यह अहम सीख मिलती है:
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इल्मे-हदीस अल्लाह का बड़ा तोहफ़ा है।
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अल्लाह अपने नेक बंदों को खास मकाम और करामत अता करता है।
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रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मोहब्बत और ताल्लुक इल्म की असली बुनियाद है।
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हर मुसलमान को इल्म हासिल करने में तवाज़ो और सच्चाई अपनानी चाहिए।