यमन के बादशाह का तौबा और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से इश्क़

राजा तुब्बा का ईमान और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए मोहब्बत:

इस्लामिक इतिहास के अनगिनत वाक़ियात हमें नबी-ए-पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अज़मत और उम्मत के लिए रहमत की झलक दिखाते हैं। इनमें से एक मशहूर वाक़िया यमन के राजा तुब्बा हमीरी का है, जिसने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमकी आमद से  एक हज़ार साल पहले अपने ईमान और मोहब्बत का इज़हार किया और ऐसा ख़त छोड़ा जिसे बाद में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तक पहुँचा दिया गया।

राजा तुब्बा हमीरी का सफ़र

तारीख़ इब्न असाकिर में लिखा है कि हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाइश से लगभग 1000 साल पहले यमन का एक बादशाह था – तुब्बा हमीरी

एक बार वह अपनी सल्तनत का दौरा करने निकला। उसके साथ 12 हज़ार आलिम व हकीम, 1 लाख 20 हज़ार घुड़सवार और 1 लाख 13 हज़ार पैदल सिपाही थे। जहाँ भी उसकी शाही शोहरत पहुँचती, लोग बड़ी तादाद में उसे देखने के लिए इकट्ठा हो जाते।

मक्का में दाख़िला और ग़ुस्सा

जब यह राजा मक्का पहुँचा तो उसने हैरानी से देखा कि कोई भी उसे देखने नहीं आया। पूछने पर वज़ीर ने बताया:
इस शहर में बैतुल्लाह (काबा शरीफ़) है, जिसकी ताज़ीम दुनियाभर से लोग करते हैं। वे लोग आपके लश्कर से ज़्यादा काबा शरीफ़ के खिदमतगुज़ारों का एहतराम करते हैं।

यह सुनकर राजा तुब्बा ग़ुस्से में आ गया और कसम खाई कि वह इस घर (काबा) को गिरा देगा और इसके रहन वालों को क़त्ल कर देगा। लेकिन उसी वक़्त उसके नक, मुँह और आँखों से ख़ून बहना शुरू हो गया और बदबूदार मवाद निकलने लगा।

तौबा और शिफ़ा

राजा ने बहुत इलाज कराया मगर कोई फ़ायदा नहीं हुआ। शाम को उसके साथ आए एक बड़े आलिम ने उसकी नब्ज़ देखी और कहा:
यह बीमारी आसमान से आई है, ज़मीन के इलाज से ठीक नहीं होगी। अगर आपने कोई बुरी नीयत की है तो तौबा कीजिए।

राजा ने दिल ही दिल में काबा शरीफ़ को गिराने के इरादे से तौबा की। तुरंत उसका ख़ून और मवाद बहना बंद हो गया और वह बिल्कुल तंदुरुस्त हो गया।

शिफ़ा पाने की खुशी में उसने काबा शरीफ़ को रेशमी ग़िलाफ़ चढ़ाया और हर मक्की को सात सात अशर्फ़ी और सात सात रेशमी कपड़े दिए।

मदीना की सरज़मीन और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निशानियाँ

इसके बाद जब राजा मदीना पहुँचा तो उसके साथ आए आलिमों ने वहाँ की मिट्टी और कंकड़ियाँ देखीं। उन्होंने कुतुब-ए-सामविया में पढ़ी हुई निशानियों से पहचान लिया कि यही वो जगह है जहाँ नबी आख़िरुज़्ज़मा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हिजरत करेंगे।

उन्होंने आपस में इरादा किया:
हम यहीं मरेंगे और यही दफ़न होंगे। अगर हमारी क़िस्मत में हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत हुई तो सबसे बड़ी दौलत मिलेगी। अगर न मिली तो हमारी क़ब्रों पर उनकी नालैन शरीफ़ की ख़ाक उड़ना ही हमारी नजात के लिए काफ़ी होगा।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए मकान और आलिमों की रिहाइश

यह सुनकर राजा तुब्बा ने 400 मकान आलिमों के लिए बनवाए। और उनके सरदार आलिम के पास एक दो मंज़िला शानदार मकान बनवाया ताकि जब नबी आख़िरुज़्ज़मा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आएँ तो यह उनकी आरामगाह बने।

साथ ही, उसने इन आलिमों की अच्छी ख़ासी मालीय मदद की और कहा:
हमेशा यहीं रहना और मेरी तरफ़ से इस शहर की हिफ़ाज़त करना।

राजा तुब्बा का ख़त

राजा तुब्बा ने उस बड़े आलिम को एक ख़त भी दिया और वसीयत की कि अगर वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत न कर सके तो उनकी नस्ल दर नस्ल यह ख़त महफ़ूज़ रखा जाए और आख़िरकार नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में पेश किया जाए।

उस ख़त में लिखा था:

कमतर बन्दा तुब्बा हमीरी की तरफ़ से शफ़ीउल-मुज़्निबीन, सय्यदुल-मुर्सलीन, मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नाम।
मैं आप पर ईमान लाता हूँ और उस किताब पर भी जो आप पर नाज़िल होगी। अगर मुझे आप की ज़ियारत का मौक़ा मिला तो यह मेरी ख़ुशक़िस्मती होगी और अगर न मिला तो आप मेरी शफ़ाअत कीजिएगा और क़ियामत के दिन मुझे मत भूलिएगा। मैं अल्लाह की तौहीद की गवाही देता हूँ और आप की रिसालत की गवाही देता हूँ।

हिजरत-ए-मदीना और ख़त की पेशकश

एक हज़ार साल तक यह ख़त आलिमों की औलाद में महफ़ूज़ रहा और आख़िरकार यह ख़त हज़रत अबू अय्यूब अंसारी (रज़ि.) के पास पहुँचा।

जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हिजरत करके मदीना पहुँचे तो आपकी ऊँटनी उसी दो मंज़िला मकान के सामने बैठी जो राजा तुब्बा ने बनवाया था।

फिर हज़रत अबू अय्यूब ने अपना ख़ास ग़ुलाम अबू लैला को वह ख़त लेकर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में भेजा।

हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसे देखते ही फ़रमाया:
तुम्हारा नाम अबू लैला है। मेरे पास राजा तुब्बा का ख़त लाओ।

जब ख़त पेश किया गया और आपने उसे पढ़ा तो मुस्कुराकर फ़रमाया:
बहोत खूब! मेरे भाई तुब्बा ने अच्छा किया।

हमें क्या सीख मिलती है?

इस वाक़िए से हमें कई अहम सबक मिलते हैं:

  1. अल्लाह तआला अपने घर (काबा शरीफ़) की हिफ़ाज़त हर दौर में करता रहा है।

  2. सच्ची तौबा इंसान की हर मुसीबत दूर कर देती है।

  3. नबी आख़िरुज़्ज़मा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अज़मत इतनी ऊँची है कि आप के आने से पहले भी उम्मत के लोग आपकी मोहब्बत और ईमान का इज़हार करते थे।

  4. नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ मोहब्बत और इमान हमारी नजात की कुंजी है।

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