हज़रत इमाम जाफर सादिक़ का एक वाकिया खुदा की हस्ती पर ईमान

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ रज़ि. का अल्लाह पर भरोसा:

इस्लामी इतिहास में हमें ऐसे अनेक वाक़ियात मिलते हैं जो अल्लाह की मौजूदगी पर गहरी दलीलें पेश करते हैं। ऐसा ही एक वाक़िया है जब हज़रत इमाम जाफर सादिक़ की मुलाक़ात एक ऐसे मल्लाह (जहाज़ चलाने वाले) से हुई जो खुदा  की हस्ती का इनकार करता था।

मल्लाह का इंकार और सवाल

वह मल्लाह कहता था कि खुदा कोई नहीं है (मआज़ अल्लाह)।

हज़रत इमाम जाफर सादिक़ ने उससे बड़े सलीके से बातचीत शुरू की और पूछा: तुम जहाज़ चलाते हो, तो क्या कभी तूफ़ान में फँसे हो?
मल्लाह ने जवाब दिया: हाँ, एक बार मेरा जहाज़ बहुत बड़े तूफ़ान में डूब गया था, सब लोग मर गए लेकिन मैं बच गया।

अल्लाह की मदद का एहसास

हज़रत इमाम जाफर सादिक़ ने पूछा: फिर तुम कैसे बचे?
मल्लाह ने कहा: शुरुआत में मुझे जहाज़ पर भरोसा था, जब जहाज़ डूब गया तो मुझे एक लकड़ी का तख़्ता मिला, उसी के सहारे तैरता रहा। लेकिन जब वह तख़्ता भी हाथ से छूट गया तो मैंने खुद कोशिश की और हाथ-पाँव मारते हुए किनारे तक पहुँच गया

हज़रत इमाम जाफर सादिक़ ने मुस्कुराकर कहा: जब जहाज़ था, तो भरोसा जहाज़ पर था। जब तख़्ता मिला, तो भरोसा उस पर हो गया। लेकिन जब सब छूट गया और तुम अकेले रह गए, तब भी तुम्हें अंदर से उम्मीद थी कि कोई बचा सकता है। बताओ वह उम्मीद किससे थी?

ईमान की तरफ़ पहला क़दम

मल्लाह कुछ देर चुप रहा और बोला: हाँ, मुझे उम्मीद थी कि कोई है जो मुझे बचा सकता है।

हज़रत इमाम जाफर सादिक़ ने फ़रमाया: वह उम्मीद उसी अल्लाह से थी जिसने तुझे उस बेबसी के हालात में भी किनारे तक पहुँचा दिया। वही खुदा है, वही तेरा मालिक है।

इतना सुनते ही मल्लाह रो पड़ा और अपने पुराने ग़लत अकीदे से तौबा करके मुसलमान हो गया।

इस वाक़िये से सीख

इस वाक़िये से हमें यह हिदायत मिलती है कि जब इंसान सब सहारे खो देता है, तब भी उसका दिल उसी अल्लाह की तरफ़ उठता है। असली भरोसा जहाज़, तख़्ते या इंसानों पर नहीं बल्कि सिर्फ़ अल्लाह पर होना चाहिए, जो हर हाल में अपने बंदों को संभाल लेता है।

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