इंसान की ज़ुबान उसके दिल का आईना:
इस्लामिक हकीकत यह बताती है कि इंसान की ज़बान वही बोलती है जो उसके दिल और दिमाग में चलता है। कुरान पाक के नूर ने हमें हक और बातिल में फर्क करना सिखा दिया है। सही सोच, सही नज़रिए और दिल का नूर ही सच्चाई को सामने लाता है।
कान सिर्फ़ सुनने के काम आते हैं, लेकिन चश्मे-बसीरत यानी दिल की नज़र, असली हाल को पहचान लेती है। जब इंसान का यक़ीन अमल से मज़बूत होता है तो वह अय़न-उल-यक़ीन के मुकाम तक पहुँच जाता है।
जो इंसान अपने आप को पहचान लेता है, दरअसल वह अपने रब को पहचान लेता है। उसकी नज़र अल्लाह की नज़र बन जाती है। और जो बंदा सिर्फ इनाम या बदले की उम्मीद के बिना अपनी जान अल्लाह की राह में दे देता है, वही असली जवान मर्द कहलाता है।
सखावत यानी दरियादिली भी अल्लाह की खुशी के लिए करनी चाहिए। आमतौर पर लोग सखावत जन्नत की उम्मीद से करते हैं, लेकिन असली सखावत वह है जिसमें इंसान बिना किसी बदले या इनाम की उम्मीद किए दूसरों की मदद करे।
हमें इस वाक़िए से क्या सीख मिलती है?
हमें यह सीख मिलती है कि इंसान की असल पहचान उसके दिल की हालत और उसके कर्मों से होती है। सही ईमान, मज़बूत यक़ीन और सच्ची सखावत ही इंसान को अल्लाह का करीब बना सकती है।