यक़ीन और इश्क़ – रूहानी ज़िंदगी की असली पहचान:
इंसान का असली कमाल यह है कि वह यक़ीन बिलग़ैब यानी ग़ैर दिखाई देने वाली चीज़ों पर भी ईमान रखे। लेकिन इसके बावजूद आरीफ़ (सच्चा जानकार) हमेशा हिकमत की झलक देखने का शौक़ रखता है। दुनिया की हर चीज़ एक वजह या सबब से सामने आती है, लेकिन असल मक़सद सिर्फ़ जिस्म की परवरिश नहीं बल्कि रूह की परवरिश होनी चाहिए।
ज़िंदगी की मुश्किलें और सख़्तियाँ दरअसल रहमत की बुनियाद होती हैं। दुनिया की तलख़ियाँ (कठिनाइयाँ) आख़िरत में इंसान के लिए रहमत और इनाम का सबब बनती हैं। इसीलिए हमें हर हाल में सब्र और तौक़ुल (अल्लाह पर भरोसा) बनाए रखना चाहिए।
हकीकत का नूर हमेशा असली रास्ता दिखाता है। ये नूर इंसान के नफ़्स को पाक बनाता है और उसे अच्छे अख़लाक़ की ओर ले जाता है। इसी वजह से कहा गया है कि दाना दुश्मन नादान दोस्त से बेहतर होता है। यानी जो सच की ओर ले जाए, वही असली रहनुमा है।
इश्क़ ही वह दीन है जो इंसान के दिल को नूर से भर देता है। जब इंसान का दिल अल्लाह के इश्क़ से रोशन हो जाता है तो वह सुकून और अम्न (शांति) के मुक़ाम तक पहुँच जाता है। इस सफ़र में वह दिल के लहू से भीग कर भी सिदरतुल मुन्तहा और उससे आगे के सफ़र का तजुर्बा कर सकता है।
अल्लाह का इश्क़ इंसान को उसके असली मक़सद तक पहुँचाता है। एक सच्चा आशिक़ जब इस रास्ते पर बढ़ता है तो हर टोक और रुकावट उसके लिए ताज़ियाना (चेतावनी) की तरह काम करती है, जिससे वह और मज़बूत होता जाता है। असल में इस मुक़ाम का बयान वही कर सकता है जिसे अल्लाह ने तौफ़ीक़ दी हो।
हमें इस वाक़िए से क्या सीख मिलती है?
इस वाक़िए से हमें यह सीख मिलती है कि इंसान को सिर्फ़ जिस्मानी ज़िंदगी पर नहीं बल्कि रूह की तरबियत पर ध्यान देना चाहिए। मुश्किलें और तकलीफ़ें अल्लाह की रहमत का ज़रिया हैं। असली नूर और हकीकत इश्क़-ए-इलाही से ही मिलती है।