रेगिस्तान में अ़ाबिद की दुआ और अल्लाह का करिश्मा:
कुछ हाजी वहाँ से गुज़रे और यह मंज़र देखकर रुक गए। उन्हें हैरानी थी कि इतनी गर्मी में यह इंसान इबादत पर कैसे इत्मिनान से मशगूल है। वे खड़े होकर इंतज़ार करने लगे कि अ़ाबिद अपनी इबादत से फ़ारिग़ हो।
जब वह सजदे से उठा तो उन्होंने देखा कि उसके हाथ और चेहरे से वुज़ू का पानी टपक रहा है। हैरान होकर उन्होंने पूछा: ये पानी कहाँ से आया?
अ़ाबिद ने आसमान की ओर इशारा किया। यह इशारा अल्लाह पर उसके भरोसे और यक़ीन की सबसे बड़ी निशानी था।
दुआ और आसमान से बारिश
हाजियों ने विनम्रता से कहा: ऐ दीन के बादशाह! हमें अपने राज़ से वाक़िफ़ कराइए ताकि हमारा ईमान और मज़बूत हो।
अ़ाबिद ने आसमान की ओर हाथ उठाए और दुआ की:
ऐ मेरे मौला! तूने मुझे हमेशा आसमान से रिज़्क अता किया है। आज इन हाजियों की दुआ भी कबूल कर ले। तूने मुझे जो दिखाया, वह अब इनके दिलों को यक़ीन अता करने का ज़रिया बन जाए।
उसकी दुआ पूरी होते ही आसमान पर बादल छा गए और बारिश शुरू हो गई। देखते ही देखते रेगिस्तान तर-बतर हो गया।
लोगों का अलग-अलग हाल
बारिश देखकर हाजियों में से कुछ के दिलों में यक़ीन और मज़बूती पैदा हो गई। उन्हें एहसास हुआ कि हिदायत और यक़ीन सिर्फ़ अल्लाह ही देता है।
लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जो संदेह और कमजोरी के साथ ही रह गए। वे हकीक़ी ईमान और यक़ीन से महरूम रहे। इससे साबित होता है कि अल्लाह हिदायत उसी को देता है जो दिल से तलाश करे।
सीख क्या मिलती है?
इस वाक़िए से हमें यह सिख मिलती है कि अल्लाह पर भरोसा रखने वाला कभी मायूस नहीं होता। तवक्कुल और सच्ची दुआ इंसान के लिए रहमत का ज़रिया बनती है। लेकिन ईमान और यक़ीन हर किसी को उसके दिल की हालत के मुताबिक़ ही नसीब होता है।