नफ़्स से बचाव और हिदायत की दुआ:
इस्लामी तालीमात हमें बताती हैं कि अल्लाह की इनायत और रहमत के बिना इंसान कभी नफ़्स के धोखे और बुराई से नहीं बच सकता। यह वाक़िआ इस बात पर रोशनी डालता है कि चाहे इंसान कितना भी पाक और नेक क्यों न हो, अल्लाह की मदद और अल्लाह वालों की दुआओं के बिना उसकी हिफ़ाज़त नामुमकिन है।
अल्लाह की पनाह के बिना कमजोरी
अगर फ़रिश्ता भी हो और उस पर अल्लाह की इनायत न हो तो वह भी नफ़्स और बुरे लोगों के शर से नहीं बच सकता। उनकी संगत इंसान के आमालनामे को काला कर देती है। इसलिए हमें हमेशा अल्लाह से पनाह मांगनी चाहिए जो हर ज़ाहिर और बातिन से वाक़िफ़ है।
इल्म का क़तरा और समंदर
इंसान के पास इल्म का सिर्फ़ एक क़तरा होता है। यह इल्म अल्लाह के दिए हुए समंदर से जुड़ता है। अगर यह इल्म नफ़्स और बुरी ख्वाहिशों में फँस जाए तो सूख सकता है। इसलिए हमें दुआ करनी चाहिए कि अल्लाह हमारे इल्म को अपनी रहमत और हिदायत से जोड़ दे।
नफ़्स से बचाव
नफ़्स (अंदरूनी इच्छाएँ) और जिस्मानी कमजोरियाँ इंसान के इल्म को मिटा सकती हैं। यह इंसान को अल्लाह से दूर कर देती हैं। लेकिन अल्लाह अपनी रहमत से इस इल्म को बचा लेता है और इंसान को फिर से रोशनी की ओर ले जाता है।
दुआ और रहमत की ताक़त
अल्लाह से दुआ करनी चाहिए कि वह हमारी कमज़ोरियों पर पर्दा डाले, हमारे ज़ाहिर और बातिन को पाक करे और हमें नफ़्स के धोखे से बचाए। इल्म का छोटा सा क़तरा अगर अल्लाह की रहमत से जुड़ जाए तो वह इंसान को हिदायत के समंदर तक पहुँचा देता है।
हमें क्या सीख मिलती है?
इस वाकिए से हमें यह सीख मिलती है कि इंसान को हमेशा अल्लाह की रहमत और इनायत पर भरोसा करना चाहिए। इल्म और हिदायत अल्लाह की तरफ़ से हैं। हमें अपने नफ़्स और बुरी ख्वाहिशों से बचते हुए दुआ करनी चाहिए कि हमारा इल्म अल्लाह की रहमत से समंदर की तरह फैले और हमें हमेशा हिदायत की राह पर रखे।