अक्ल और शहवत – इंसान की असली पहचान:
एक बादशाह का एक गुलाम था, जो शहवतमंद, आलसी और मूर्ख था। वह अपने मालिक की मामूली सी सेवा भी सही तरीके से नहीं करता था। यह गुलाम न सिर्फ नालायक था बल्कि अपने आका का बदख़्वाह भी था। जब बादशाह को उसकी हरकतों का एहसास हुआ, तो उसने उसकी तनख्वाह कम कर दी।
मगर गुलाम समझदार नहीं था। उसने अपने गुनाहों पर नज़र डालने और माफी मांगने की बजाय सरकशी दिखानी शुरू कर दी। अगर वह अक्लमंद होता तो अपनी गलती समझकर माफी तलब करता और फिर से मालिक की नजरों में अच्छा बन सकता था।
इस गुलाम की मिसाल एक गधे जैसी है, जिसकी एक टांग पहले ही बंधी हुई थी, लेकिन वह फिर भी शरारत करने से बाज़ नहीं आया। नतीजतन उसकी दूसरी टांग भी बांध दी गई। उस वक्त गधा यह कहने लगा कि मेरी एक टांग बांधना ही काफी था। लेकिन उसे समझ नहीं थी कि दोनों टांगें उसकी अपनी कमीनगी की वजह से बंधीं।
अगर वह अपनी पहली टांग के बंधने से सबक लेता और शरारत छोड़ देता तो शायद उसकी दूसरी टांग खुल भी जाती।
फरिश्ते, जानवर और इंसान का फर्क
अल्लाह ने फरिश्तों को सिर्फ अक्ल बख्शी है। अक्ल का तकाज़ा यही है कि वे हमेशा अल्लाह की इबादत और फरमाबरदारी करें। इसलिए फरिश्तों से गुनाह का इज़हार कभी नहीं होता।
जानवरों को अल्लाह ने सिर्फ शहवत और भूख दी है। उनकी सोच और अमल सिर्फ खाने-पीने और जिन्सी ख्वाहिशों तक सीमित है।
लेकिन इंसान को अल्लाह ने दोनों चीज़ें दीं—अक्ल भी और शहवत भी। यही वजह है कि इंसान का मक़ाम ऊँचा भी है और गिर सकता भी है। अगर इंसान अक्ल और ईमान से काम ले तो वह फरिश्तों से भी बढ़कर बन सकता है।
फरिश्तों की असली ग़िज़ा अल्लाह की मोहब्बत और उसका इश्क़ है। वही उन्हें ताक़त और नूर देता है।
हमें क्या सीख मिलती है
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अक्ल और शहवत दोनों इंसान के अंदर हैं, मगर अक्ल से सही फैसले लेने चाहिए।
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गुनाह की वजह से इंसान का हाल उसी गधे जैसा हो जाता है, जो सीख नहीं लेता।
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अल्लाह ने इंसान को फरिश्तों और जानवरों से अलग बनाया है, इसलिए इंसान का मकाम सबसे ऊँचा है।
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सच्चा रास्ता हमेशा अक्ल और ईमान से होकर गुजरता है।
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मोहब्बत और इश्क़ ही फरिश्तों की असली ताक़त है, और इंसान भी इसी से नूर पा सकता है।