शैतान का घमंड और इंसान की इज़्ज़त

घमंड से मिलने वाली सज़ा:

जब अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को पैदा किया, तो हुक्म दिया कि सारे फ़रिश्ते उन्हें सज्दा करें। सब फ़रिश्तों ने अल्लाह के हुक्म के आगे सर झुका दिया, मगर इब्लीस (शैतान) ने सज्दा करने से इंकार कर दिया।

अल्लाह तआला ने पूछा:  इब्लीस! तूने मेरे हुक्म के बावजूद आदम को सज्दा क्यों नहीं किया?
शैतान ने घमंड से जवाब दिया: मैं आदम से बेहतर हूँ। आपने मुझे आग से बनाया है और आदम को मिट्टी से। आग रोशन और हल्की होती है जबकि मिट्टी भारी और अंधेरी। तो मैं क्यों मिट्टी के सामने झुकूँ?

यह जवाब सुनकर अल्लाह तआला का ग़ज़ब नाज़िल हुआ। अल्लाह ने फरमाया: निकल जा यहाँ से! तुझे इस जगह रहने का कोई हक़ नहीं। तू घमंडी और गुमराह है। अब तू ज़लील और रद्द कर दिया गया।

यह वाक़िया हमें बताता है कि अल्लाह के हुक्म के सामने अकड़ और घमंड की कोई जगह नहीं। शैतान का गुनाह सिर्फ़ इतना था कि उसने अपनी ‘बेहतरी’ का दावा किया और अल्लाह के हुक्म को मानने से इंकार कर दिया।

सीख :

इस वाक़िये से हमें यह सिख मिलती है कि घमंड और अकड़ इंसान को हमेशा बर्बादी की ओर ले जाती है। अल्लाह के हुक्म के आगे सिर झुकाना ही असली इज़्ज़त है। जो भी अपने आप को दूसरों से बेहतर समझता है, उसका अंजाम शैतान जैसा होता है। इंसान को हमेशा विनम्र, आज्ञाकारी और अल्लाह की इबादत में झुका रहना चाहिए।

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