नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रहमत और मोहब्बत का अनोखा वाक़िया:
एक दिन नबी-ए-पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने नन्हे नवासों हज़रत हसन और हज़रत हुसैन (रज़ि.अ.) के रोने की आवाज़ सुनी। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़ौरन घर पधारे और हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.अ.) से पूछा:
मेरे बेटे क्यों रो रहे हैं?
हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.अ.) ने अर्ज़ किया:
या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! इन्हें प्यास लगी है और इस वक़्त पानी घर में मौजूद नहीं।
यह सुनकर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
उन्हें मेरे पास लाओ।
सबसे पहले आपने हज़रत हसन (रज़ि.अ.) को गोद में उठाया और अपनी मुबारक ज़बान उनके मुँह में रख दी। हसन ने आपकी ज़बान मुबारक चूसना शुरू किया और उनकी प्यास बुझ गई, रोना बंद हो गया।
फिर आपने हज़रत हुसैन (रज़ि.अ.) को उठाया और उनके मुँह में भी अपनी मुबारक ज़बान डाली। हुसैन ने भी चूस लिया और उनकी प्यास पूरी तरह बुझ गई, वे भी चुप हो गए।
सीख:
इस वाक़िये से हमें यह सीख मिलती है कि नबी-ए-पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुहब्बत, रहमत और करामत बेमिसाल है। उन्होंने नन्हे हसन और हुसैन की प्यास को चमत्कारी अंदाज़ में बुझाकर यह दिखाया कि उनकी ज़िंदगी सिर्फ़ रहनुमाई ही नहीं बल्कि रहमत का दरिया भी है। हमें चाहिए कि हम भी बच्चों के साथ रहमत, मोहब्बत और नर्मी का सलूक करें।