शेख-ए-तरीक़त और दिलों के हालात

दिल और रूह के नूर की तलाश:

शेख-ए-तरीक़त (रूहानी रहबर) वो शख्स होता है जो दिलों के हाल से वाक़िफ होता है। इसलिए तसव्वुफ़ में बाहरी आचार-व्यवहार जितना ज़रूरी है, उतना ही आंतरिक (बातनी) आदाब भी अहमियत रखते हैं। असल तालीम यह है कि इंसान अपने अंदर झांके और उस रूहानी नूर को तलाश करे जो उसे अल्लाह की ओर ले जाता है।

कहा गया है कि अलम-ए-ग़ैब (अदृश्य जगत) की खुशबू इसी दुनिया में तलाश करनी चाहिए। जो शख्स अपनी नज़र को पाक करता है और नूर-ए-बसीरत (आंतरिक दृष्टि का प्रकाश) हासिल करता है, वही असली पहचान पा सकता है। अरिफ (सच्चा जानकार) अपनी इस रूहानी दृष्टि से न सिर्फ़ खुद रोशन होता है, बल्कि दूसरों के दिलों को भी रौशन कर देता है।

एक हिदायतयाफ़्ता (राह दिखाया हुआ) हस्स (Sense) जब नूर पाता है तो उसका असर दूसरी इंद्रियों तक पहुँचता है। यानि रूहानी इल्म सिर्फ़ आंख या कान तक सीमित नहीं रहता, बल्कि इंसान के पूरे एहसासात (भावनाओं) और जज़्बात पर असर डालता है। यही वजह है कि सच्चे अरिफ की बात लोगों की हंसी और मज़ाक को भी मात दे देती है।

आंतरिक बातनी हिस्स की हकीकत यह है कि जिस तरह शरीर की ज़ाहिरी शक्ल आसमान की तरह साफ़ नज़र आती है, उसी तरह रूह भी मौजूद है मगर छुपी हुई। इंसान की अकल-ए-सलीम (शुद्ध बुद्धि) तो रूह से भी ज़्यादा परदे में है। इसका मतलब यह है कि असल पहचान और सच्ची समझ ज़ाहिरी आंखों से नहीं बल्कि रूहानी आंखों से होती है।

सीख:

इस वाक़िये से हमें यह सिख मिलती है कि इंसान को सिर्फ़ ज़ाहिरी इल्म और दिखाई देने वाली चीज़ों पर क़ुर्बान नहीं होना चाहिए। असली हकीकत दिल और रूह के नूर से ही सामने आती है। शेख-ए-तरीक़त अपने मुरिदों को इसी नूरी सफ़र की ओर ले जाता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top