इंसानी रूह और अल्लाह का करम:
सूफियों का दिल हमेशा अल्लाह तआला की तजल्लीयात (अनवार-ए-इलाही) का केंद्र माना जाता है। उनका दिल ऐसा आईना है जिसमें रौशनी सिर्फ़ अल्लाह की तरफ़ से उतरती है। यही रूहानी खुशबू उन्हें हक़ की ओर खींचती है।
रहबर-ए-कामिल की पहचान
एक सच्चा रहबर-ए-कामिल (सच्चा मार्गदर्शक) किसी चीज़ के ज़ाहिर होने से पहले ही उसके हाल से वाक़िफ़ होता है। इसका कारण यह है कि वह अल्लाह के क़रीब होता है और उसे उस नूर से इल्म मिलता है जो आम इंसानों को हासिल नहीं।
तख़्लीक़-ए-आलम से पहले का इल्म
कहा जाता है कि पिराने-कामिल यानी अल्लाह के सच्चे दोस्त तख़्लीक़-ए-आलम (दुनिया की रचना) से पहले ही फ़िक्र और हिकमत में मौजूद थे। उनका इल्म और उनका तजुर्बा सूरज से भी आगे तक फैला हुआ है। यह इल्म कोई साधारण इल्म नहीं बल्कि अल्लाह की तरफ़ से अता किया हुआ इल्म है।
इंसानी रूह और दोनों जहाँ
इंसानी रूह एक नूर-ए-वाहिद (एक ही नूर) है। यही रूह दोनों जहानों (दुनिया और आख़िरत) का असल है। कहा गया है कि दोनों जहान इस रूह के ही रुख़सार का अक्स हैं। इंसान को चाहिए कि उसका शौक़ और तलब सिर्फ़ अल्लाह के हुस्न-ए-रुख़सार की तरफ़ हो।
अल्लाह का करम और इंसान की तलब
अगर इंसान का शौक़ सच्चा और तलब पाक हो, तो अल्लाह तआला अपने करम से उसे आसमानों के तमाम परतों से गुज़ार कर अपनी नेमतों तक पहुंचा देता है। असल चीज़ इंसान का दिल और उसकी नीयत है।
हमें क्या सीख मिलती है?
इस वाक़िये से हमें यह सीख मिलती है कि इंसान की असली क़ीमत उसके दिल और रूह की पाकीज़गी से है। अगर इंसान का दिल अल्लाह की तरफ़ सच्चे इरादे से झुका हो तो उसे इल्म, हिकमत और क़ुरबत-ए-इलाही (अल्लाह का क़रीब होना) हासिल होता है। हमें चाहिए कि हम अपनी नीयत को साफ़ रखें, दिल को अल्लाह के नूर से रोशन करें और अपनी तलब सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह की रहमत की तरफ़ रखें।