इल्म का दरख़्त और रूहानी सफ़र:
दुनिया के अंदर इल्म (ज्ञान) ऐसा दरख़्त है जिसमें आब-ए-हयात यानी ज़िंदगी देने वाला पानी मौजूद है। यह इल्म अल्लाह तआला की तरफ़ से आता है। इल्म का सबसे छोटा दर्जा भी इंसान को अबदी ज़िंदगी (हमेशा रहने वाली ज़िंदगी) की ओर ले जाता है।
इल्म और उसके अनगिनत नाम
इल्म की कोई हद नहीं, यह बेपाया है। इसके हज़ारों नाम और सिफ़ात हैं। अगर इंसान सिर्फ़ नाम तक सीमित रहे तो वह अधूरा है, लेकिन जब वह नामों से आगे बढ़कर सिफ़ात (गुणों) को देखता है, और फिर उन सिफ़ात से आगे बढ़कर ज़ात (अल्लाह की हकीकत) की तरफ़ जाता है तो उसकी रूहानी तरक़्क़ी शुरू होती है।
नफ़्स से निजात और तौहीद की ओर
इंसान का नफ़्स (स्वार्थ और अहंकार) उसे नीचे खींचता है। लेकिन जब इंसान नफ़्स से निजात पा लेता है तो वह ग़लबा-ए-वहदत (अल्लाह की एकता) में दाख़िल हो जाता है। यह रास्ता इल्म और रूहानी सफ़र से होकर ही तय होता है।
हक़ीक़त और मायने तक पहुंचना
जब इंसान सिर्फ़ नामों से निकलकर हक़ीक़त और मायने (सच्चाई और असली अर्थ) तक पहुंचता है तो उसे सुकून और राहत मिलती है। इस सुकून की ख़ूबी यह है कि वह बदलते हालात से नहीं बदलती। यह एक ऐसी हक़ीक़त है जो हमेशा कायम रहती है।
शेख़-ए-कामिल की रहनुमाई
शेख़-ए-कामिल (सच्चे रहबर) का अख़लाक़ और अख़लास (सच्चाई) दूसरों की रियाकारी या हसद (जलन) से नहीं बदलता। बल्कि वह अपने मुरिदों (शागिर्दों) को एक नफ़्स-ए-वाहिद (एक जान) बना देता है। यही उसकी सबसे बड़ी पहचान है कि वह दिलों को जोड़ता है, तोड़ता नहीं।
हमें क्या सीख मिलती है?
इस वाक़िए से हमें यह सीख मिलती है कि असली इल्म वही है जो इंसान को नाम और शकल से निकालकर हक़ीक़त तक पहुंचा दे। नफ़्स से निजात और अख़लास (सच्चाई) की तरफ़ बढ़ना ही इंसान की असली तरक़्क़ी है। हमें चाहिए कि हम इल्म के दरख़्त से आब-ए-हयात लें और अपनी रूह को तौहीद के नूर से रोशन करें।