अबूबक्र (रज़ि.) को ऊँचा मक़ाम कैसे मिला?
हज़रत अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) एक दिन हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ (रज़ि.) के पास पहुँचे और अकीदत भरे अंदाज़ में पूछा —
ऐ अबूबक्र! आप बताइए कि आप इस इमानी बुलंदी और ऊँचे दर्जे को किन बातों की वजह से हासिल कर पाए हैं?
हज़रत अबूबक्र (रज़ि.) ने फ़रमाया — अली! पाँच चीज़ें हैं जिनसे मुझे अल्लाह ने ये मक़ाम दिया है।
पहला:
मैंने लोगों को दो हिस्सों में देखा —
एक वो जो दुनिया को पाने में लगे हैं और दूसरे वो जो ‘आख़िरत’ की कोशिश करते हैं।
मैंने दोनों को छोड़कर सिर्फ़ अपने रब को रज़ा करने की कोशिश की।
दूसरा:
जब से मैंने इस्लाम कुबूल किया है कभी पेट भरकर दुनिया का खाना नहीं खाया — क्योंकि अल्लाह की पहचान की मिठास ने मुझे दुनिया की भूख से बेपरवाह कर दिया।
तीसरा:
इस दिन से कभी पेट भरकर पानी नहीं पिया — क्योंकि मोहब्बत-ए-इलाही के पानी ने मेरी रूह को सैराब कर दिया।
चौथा:
जब भी दुनिया और आख़िरत का कोई काम सामने आया, मैं ने हमेशा आख़िरत वाले काम को तरजीह दी और दुनिया की परवाह कभी नहीं की।
पाँचवां और आख़िरी राज़:
मैं हमेशा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की संगत में रहा, और ख़ुशनसीबी से मेरी सोहबत उनके साथ बहुत अच्छी रही। उन्हीं की संगत ने मुझे वो बना दिया जो आज मैं हूँ।
इस वाक़िए से हमें क्या सीख मिलती है?
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सच्चा दर्जा मेहनत, इमान और अल्लाह की रज़ा के लिए जीने से मिलता है।
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आख़िरत को ऊपर रखने वाला इंसान ही दुनिया और आख़िरत दोनों में कामयाब होता है।
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नेक सोहबत और अच्छे लोगों के साथ रहना इंसान को ऊँचा मक़ाम दिलाता है।