अंगूठी पर अबूबक्र (रज़ि.) का नाम अल्लाह ने लिखवाया:
एक बार हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी मुबारक अंगूठी हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ (रज़ि.) को दी और फ़रमाया –
अबूबक्र! इसपर सिर्फ لا الہ الا اللہ (ला इलाहा इल्लल्लाह) लिखवा लाओ।
हज़रत अबूबक्र बेहद अदब से अंगूठी लेकर कारीगर के पास पहुँचे। उनका दिल यह गवारा न कर सका कि अल्लाह के नाम के साथ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नाम न हो, इसलिए उन्होंने अपनी मोहब्बत के मुताबिक़ उसपर लिखवाया –
“لا الہ الا اللہ محمد رسول اللہ”
(ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह)
जब वे अंगूठी वापस लेकर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में पहुँचे तो देखा कि उसपर सिर्फ अल्लाह और रसूल का नाम ही नहीं बल्कि ابو بکر الصدیق (अबूबक्र सिद्दीक़) भी खुदा हुआ है।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हँसकर पूछा:
अबूबक्र! हमने तो सिर्फ ला इलाहा इल्लल्लाह लिखवाने को कहा था, तुमने मेरा नाम और साथ ही अपना नाम भी क्यों लिखवाया?
हज़रत सिद्दीक़ ने अदब से जवाब दिया –
या रसूलुल्लाह! मेरा दिल नहीं माना कि अल्लाह के नाम के साथ आपका नाम न हो। और जहाँ तक मेरी बात है… मेरा नाम तो इस अंगूठी पर आते-आते खुद लिखा गया! मैं तो हरगिज़ नहीं लिखवाया।
इतने में हज़रत जिब्रील अमीन (अलैहिस्सलाम) फ़रिश्तों के सरदार बनकर हाज़िर हुए और अर्ज़ किया –
या रसूलल्लाह! अल्लाह फ़रमाता है – सिद्दीक़ (अबूबक्र) इसपर राज़ी न थे कि आपके नाम को हमारे नाम से अलग करें। और हम इसपर राज़ी न हुए कि सिद्दीक़ का नाम आपके नाम से अलग करें।
अबूबक्र ने मोहब्बत में आपका नाम अल्लाह के नाम के साथ जोड़ दिया और हमने अबूबक्र का नाम आपके नाम के साथ जोड़ दिया।
हमें इस वाक़िए से क्या सीख मिलती है?
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अल्लाह और उसके रसूल से सच्चा इश्क़ करने वालों की मोहब्बत को खुद रब क़ुबूल करता है।
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जो दिल से रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अदब करता है, अल्लाह उसके नाम को बुलंद कर देता है।
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कभी-कभी इख़लास से किया गया काम इतनी बारक़ी से क़ुबूल होता है कि वह करिश्मा बन जाता है।