जब मस्जिद में अज़ान बंद थी, तब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की क़ब्र से आई आवाज़:
जब यज़ीद की फौज ने मदीना मुनव्वरा पर हमला किया, तो तीन दिन तक मस्जिद-ए-नबवी में अज़ान नहीं हो सकी। उस दौर का नाम “वाक़िया हर्रा” रखा गया, जिसमें मदीना शरीफ़ के हालात बेहद नाज़ुक हो गए थे।
इन्हीं तीन दिनों में मशहूर ताबई (ताबेईन में से) हज़रत सईद बिन अल-मुसीब रज़ियल्लाहु अन्हु मस्जिद-ए-नबवी में ही रुके रहे। उन्होंने किसी डर या परेशानी के चलते मस्जिद को नहीं छोड़ा।
हज़रत सईद बिन अल-मुसीब रज़ि. बयान करते हैं कि जब मस्जिद में कोई अज़ान देने वाला नहीं था और कोई इमाम भी नहीं था, तब भी उन्हें हर नमाज़ के वक्त एक हल्की सी अज़ान की आवाज़ क़ब्र-ए-अनवर (रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मबारक क़ब्र) से सुनाई देती थी। ये आवाज़ न बहुत तेज़ होती थी और न कोई इंसान नज़र आता था — बस एक नूरानी एहसास होता।
इस वाक़िआ से हमें क्या सीख मिलती है?
इस वाक़िआ से यह सिखने को मिलता है कि जब दुनियावी हालात कितने भी मुश्किल क्यों न हों, अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रहमत कभी बंद नहीं होती। हज़रत सईद बिन अल-मुसीब रज़ि. का मस्जिद में ठहरना और फिर हर नमाज़ के वक्त क़ब्र-ए-अनवर से अज़ान की आवाज़ सुनना, ये बताता है कि अल्लाह अपने नेक बंदों को अकेला नहीं छोड़ता।