कैदी की रिहाई

कैद में मुसलमान की फ़रियाद

इब्न मरज़ूक बयान करते हैं कि जज़ीरा शकर का एक मुसलमान दुश्मनों के हाथों क़ैद कर लिया गया। उसके हाथ-पाँव लोहे की ज़ंजीरों से बाँध दिए गए और उसे अंधेरे क़ैदखाने में डाल दिया गया।

उस मुसलमान ने दिल की गहराई से पुकारा:
या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
उसकी आवाज़ सुनकर काफ़िर मज़ाक उड़ाने लगे और बोले – अपने रसूल से कहो कि तुम्हें इस कैद से छुड़ाने आएं।

आधी रात का करिश्मा

रात का वक़्त था। जब आधी रात गुज़री तो अचानक उस क़ैदखाने में एक नूरानी शख़्स आए। उन्होंने कैदी से कहा:
उठो, और अज़ान दो।

कैदी ने काँपते हुए अज़ान शुरू की। जब उसने यह कलिमा पढ़ा –
अश्हदु अन्ना मुहम्मदुर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
तो अचानक उसकी सारी ज़ंजीरें टूटकर गिर गईं। वह कैदी अल्लाह की कुदरत से आज़ाद हो गया।

जन्नत जैसे बाग़ का ज़ाहिर होना

ज़ंजीरों से आज़ादी के बाद उसके सामने एक हसीन बाग़ दिखाई दिया। वह उसी बाग़ से होता हुआ क़ैदखाने से बाहर निकल आया।

सुबह होते ही उसकी रिहाई की ख़बर पूरे जज़ीरा शकर में फैल गई। लोग इस चमत्कार को सुनकर हैरान रह गए और अल्लाह की कुदरत और रसूल  के करिश्मे पर ईमान और भी मज़बूत हुआ।

हमें क्या सीख मिलती है?

इस इस्लामी वाक़िए से हमें यह सिख मिलती है कि:

  1. सच्चे दिल से फ़रियाद करना कभी बेकार नहीं जाता।

  2. अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नाम मुसीबतों से छुटकारा दिलाता है।

  3. अज़ान की ताक़त – इसमें ऐसी बरकत है कि ज़ंजीरें भी टूट जाती हैं।

  4. ईमान वालों की मदद अल्लाह की तरफ़ से होती है।

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