एक माँ और बच्चे की करामाती मुलाक़ात

बच्चे ने क्यों कहा या रसूल अल्लाह?

एक बार की बात है, हमारे प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने सहाबा (रज़ि.) के साथ बैठे थे। उसी समय एक गैर-मुस्लिम (मुशरिक) औरत वहाँ से गुज़री। उसकी गोद में एक लगभग दो महीने का छोटा सा बच्चा था।

जैसे ही उस बच्चे की नज़र हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर पड़ी, उसने एकदम साफ़ और फसीह ज़बान में कहा:

आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के रसूल! और ऐ सबसे अज़ीज़ और नेक मख़लूक़!

उस बच्चे की माँ बहुत हैरान हुई। उसने फ़ौरन बच्चे से पूछा:

बेटा! तुम बोल कैसे सकते हो? और तुम्हें कैसे पता चला कि ये अल्लाह के रसूल हैं?

बच्चा अपनी माँ से बड़ी स्पष्टता से बोला:

“ऐ माँ! मुझे यह बोलना उसी अल्लाह ने सिखाया है जिसने हर इंसान को बोलने की ताक़त दी है। और देखो, मेरे सिर के ऊपर जिब्रील (अलैहिस्सलाम) खड़े हैं — वही मुझे बता रहे हैं कि यह अल्लाह के रसूल हैं।

माँ ने कबूल किया इस्लाम

उस औरत ने जब यह करामात देखी, तो बिना देर किए कलमा पढ़ा और इस्लाम कुबूल कर लिया।

अशहदु अल्ला इलाहा इल्लल्लाह व अशहदु अन्न मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलूहू

मौलाना रूमी का ज़िक्र

मौलाना रूमी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी मशहूर किताब “मसनवी शरीफ़” में इस वाक़िये का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि:

जब बच्चे ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पहचाना, तो नबी करीम  ने उससे पूछा:

बेटा! तुम्हारा नाम क्या है?

बच्चा बोला:

“या रसूल अल्लाह! मेरी माँ मुझे ‘अब्दे घुरैय’ बुलाती है, लेकिन अल्लाह के पास मेरा नाम ‘अब्दुल अज़ीज़’ है।

हमें क्या सीख मिलती है?

इस वाक़िए से हमें यह सीख मिलती है कि अल्लाह जिसे चाहे, अपनी हिदायत और करामात से नवाज़ देता है — चाहे वह एक छोटा बच्चा ही क्यों न हो। और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पहचान खुद जिब्रील (अलैहिस्सलाम) के ज़रिए कराई जा सकती है।

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