बारिश की दुआ और रसूल अल्लाह का सलाम

बारिश की दुआ और रसूल अल्लाह का सलाम:

हज़रत उमर (रज़ि.) के ख़िलाफ़त के दौर में एक बार मदीना और उसके आस-पास के इलाके में भीषण अकाल (क़हत) पड़ गया। लोग भूख और प्यास से बेहाल हो गए। आसमान से बारिश का कोई नामोनिशान नहीं था। ऐसे समय में, सहाबी हज़रत बिलाल बिन हारिस मज़नी (रज़ि.) ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमके रोज़े मुबारक पर हाज़िरी दी।

हज़रत बिलाल ने रोते हुए अरज़ किया:
“या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! आपकी उम्मत तबाही के कगार पर है, बारिश नहीं हो रही।”

उस रात हज़रत बिलाल को एक मुबारक ख्वाब नसीब हुआ। उन्होंने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा। आपने फ़रमाया:

“ऐ बिलाल! उमर के पास जाओ, उसे मेरा सलाम कहो और बताओ कि बहुत जल्द बारिश हो जाएगी। और उससे कहना कि वह उम्मत के साथ कुछ नरमी बरते।”

(यह नरमी की बात इसलिए कही गई क्योंकि हज़रत उमर (रज़ि.) दीन के मामलों में सख्त थे।)

सुबह होते ही हज़रत बिलाल, हज़रत उमर (रज़ि.) के पास पहुंचे और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का सलाम और पैग़ाम पहुँचाया। हज़रत उमर यह सुनकर फूट-फूट कर रोने लगे। उन्हें यह महसूस हुआ कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अब भी अपनी उम्मत की हालत से बेख़बर नहीं हैं।

कुछ ही समय में मदीना और आस-पास के क्षेत्रों में मूसलधार बारिश होने लगी। लोग सुकून और राहत की सांस लेने लगे। यह घटना उम्मत के लिए एक बहुत बड़ा सबक है।

हमें इस वाक़िये से क्या सीख मिलती है?

  • रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रहमत आज भी अपनी उम्मत पर जारी है।

  • सच्चे दिल से की गई दुआ अल्लाह तक जरूर पहुंचती है।

  • नेक और सच्चे लोग उम्मत के लिए रहमत का ज़रिया बनते हैं।

  • अल्लाह की मदद कभी भी, किसी भी ज़रिया से आ सकती है।

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