चर्ख़े से अल्लाह की पहचान:
दुनिया में अल्लाह की मौजूदगी और उसकी वहदानियत (एक होने) की निशानियाँ हर जगह फैली हुई हैं। कभी-कभी एक साधारण सी बात या छोटा सा उदाहरण इंसान को गहरे सबक दे जाता है। ऐसा ही एक दिलचस्प किस्सा एक आलिम और एक बढ़िया (बूढ़ी औरत) का है, जो हमें अल्लाह तआला की मौजूदगी और उसकी वहदानियत पर यक़ीन दिलाता है।
चर्ख़ा और अल्लाह की मौजूदगी
एक आलिम ने एक बढ़िया को चर्ख़ा कातते हुए देखा। उसने पूछा:
बुढ़िया! तूने सारी उम्र बस चर्ख़ा ही काता है या कभी अपने ख़ुदा को भी पहचाना?बुढ़िया ने सादगी से जवाब दिया:
बेटा! सब कुछ तो मैंने इसी चर्ख़े में देख लिया है।आलिम ने हैरानी से कहा:
अच्छा तो बता, ख़ुदा मौजूद है या नहीं?बुढ़िया बोली:
हाँ, हर घड़ी, हर दिन-रात, हर वक़्त मेरा ख़ुदा मौजूद है।
चर्ख़े से दी गई दलील
आलिम ने फिर पूछा:
इसकी दलील क्या है?
बुढ़िया ने कहा:
दलील यही मेरा चर्ख़ा है। जब तक मैं इसे चलाती हूँ यह चलता रहता है। और जैसे ही मैं इसे छोड़ देती हूँ, यह रुक जाता है। तो जब इस छोटे से चर्ख़े को चलाने वाले की ज़रूरत है, तो ये आसमान, ज़मीन, सूरज और चाँद जैसे बड़े-बड़े चर्ख़े अपने आप कैसे चल सकते हैं? इन्हें भी चलाने वाला एक है, और वो हर घड़ी मौजूद है।
अल्लाह एक ही है
आलिम ने और सवाल किया:
अच्छा ये बताओ कि आसमान और ज़मीन का चर्ख़ा चलाने वाला एक है या दो?
बुढ़िया मुस्कुराई और बोली:
चलाने वाला सिर्फ़ एक है। अगर दो होते, तो जैसे मेरे चर्ख़े को कोई और भी घुमाता, तो या तो इसकी रफ़्तार बदल जाती, या ये ठहर जाता, या टूट जाता। लेकिन ऐसा नहीं होता। आसमान-ज़मीन और सूरज-चाँद का चर्ख़ा बिना रुके एक ही रफ़्तार से चल रहा है। इसका मतलब है कि इन्हें चलाने वाला सिर्फ़ एक ही है।
इस वाक़िए से हमें यह सीख मिलती है कि:
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अल्लाह की मौजूदगी की निशानियाँ हर जगह हैं।
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छोटे-से छोटा अमल भी अल्लाह की पहचान करवा सकता है।
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अल्लाह एक है, उसका कोई शरीक (साझेदार) नहीं।
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इंसान को अपनी ज़िंदगी की छोटी-छोटी चीज़ों से भी सबक लेना चाहिए।