सच्चे ईमान की ताक़त – दरिया का करिश्मा
हज़रत उमर रज़ि. के दौर का एक रोचक व प्रेरणादायक वाक़िया है, जब उन्होंने एक फ़ौज को मदायन-किसरा की तरफ भेजा। यह सेना दजलह नदी (Tigris River) के किनारे पहुँची, लेकिन सामने एक बड़ी चुनौती थी – नदी को पार करने के लिए कोई जहाज़ या कश्ती मौजूद नहीं थी।
इस मुसीबत को देख कर सेना के दो जांबाज़ और बहादुर जनरल – हज़रत सअद बिन अबी वक़्कास रज़ि. और हज़रत ख़ालिद बिन वलीद रज़ि. – आगे बढ़े। उन्होंने अल्लाह पर भरोसा किया और दरिया से कुछ इस तरह बात की:
“ऐ दरिया! अगर तू अल्लाह के हुक्म से चलता है तो हम तुझे रसूलुल्लाह ﷺ की हुरमत और उमर फ़ारूक के अद्ल का वास्ता देते हैं, हमें रास्ता दे ताकि हम आसानी से पार जा सकें।”
फिर बिना हिचकिचाहट उन्होंने अपने घोड़ों को दरिया में डाल दिया। इस वाक़िये ने सेना को ऐसा जोश और यक़ीन दिया कि सभी सिपाहियों ने भी अपने घोड़ों के लगाम छोड़ दिए और दरिया में कूद पड़े।
अल्लाह की क़ुदरत और नेक नीयत का करिश्मा देखिए – दरिया ने उन पाक लोगों को रास्ता दे दिया। उनकी जानें और घोड़े दोनों सलामत रहे, यहां तक कि उनके घोड़ों के खुर भी गीले नहीं हुए। इस चमत्कारिक सफर के बाद वह सही-सलामत दरिया पार कर गए।
हमें इस वाक़िए से क्या सीख मिलती है?
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सच्चा ईमान और अल्लाह पर भरोसा इंसान को हर मुश्किल से निकाल सकता है।
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जब नीयत पाक हो और मक़सद अल्लाह की राह में हो, तो दरिया भी रास्ता दे देता है।
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अच्छे नेतृत्व और इमानदार जनरल की राह पर चलने वाली क़ौम कभी हारती नहीं।