दीवाने ऊंट ने भी मान लिया नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हुक्म:
यह वाक़िया उस समय का है जब मदीना में बनी नजार नाम की एक जगह थी। वहां एक बाग (बग़ीचा) था जिसमें एक दीवाना ऊंट घुस आया। वह ऊंट बहुत उग्र था। जो भी व्यक्ति उस बाग में जाता, ऊंट उस पर झपट पड़ता और उसे काटने को दौड़ता।
लोग इस हालात से परेशान होकर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सेवा में पहुंचे और सारी बात अर्ज़ की।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
चलिए, मैं खुद वहां चलता हूँ।
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस बाग में पहुंचे और सीधे ऊंट से कहा:
इधर आओ।
जैसे ही ऊंट ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आवाज़ सुनी, वह झपटता हुआ आया लेकिन ग़ुस्से में नहीं… बल्के वह नर्मी और अदब के साथ आया और अपना सिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कदमों में रख दिया।
यह देखकर हर कोई हैरान रह गया।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
इसकी नकेल (रसी) लाओ।
नकेल लाई गई, और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऊंट को पकड़ा और उसके मालिक के हवाले कर दिया। ऊंट अब बिल्कुल शांत और आराम से चल रहा था।
इसके बाद नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:
मुझे जमीन और आसमान की हर मखलूक जानती है कि मैं अल्लाह का रसूल हूँ — सिर्फ काफ़िर ही हैं जो नहीं जानते।
इस वाक़िए से हमें क्या सीख मिलती है:
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अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पहचान इंसानों ही नहीं, जानवरों को भी थी।
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नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मौजूदगी में वह जानवर भी शांत हो गया जो किसी के काबू में नहीं था।
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यह वाक़िया रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नबूवत की एक बड़ी दलील है।
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आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रहमत सिर्फ इंसानों के लिए नहीं, बल्कि हर मख़लूक़ के लिए है।