शेख़-ए-कामिल – रहमत का असीम दरिया:
इस्लाम की रूहानी दुनिया में फ़क़ीर और शेख़-ए-कामिल (सच्चे मार्गदर्शक) का बहुत ऊँचा दर्जा है। यह वाक़िआ हमें बताता है कि किस तरह अल्लाह से जुड़कर इंसान सुकून पाता है और अहंकार व ग़लत आदतें उसकी तबाही का कारण बनती हैं।
फ़क़ीर का असली सुकून
फ़क़ीर वह होता है जो अल्लाह के साथ रहने में और मख़लूक़ (लोगों) से अलग-थलग होकर सच्चा सुकून महसूस करता है। राह-ए-हक़ (सच्चाई के रास्ते) पर ऊँचा मुकाम उन्हीं को मिलता है जो मर्दान-ए-हक़ यानी नेक और बड़े लोगों की इज़्ज़त करते हैं।
बड़ों की इज़्ज़त का महत्व
जो लोग बड़ों की बेअदबी करते हैं, वे अल्लाह के ग़ज़ब का शिकार हो सकते हैं। उनकी ज़िंदगी आतिश-ए-हक़ (सच्चाई की आग) से जल सकती है। इसलिए इंसान के लिए ज़रूरी है कि वह किसी शेख़-ए-कामिल का मुरीद बने, क्योंकि वहीं से अमान और हिफ़ाज़त मिलती है।
शेख़-ए-कामिल का दर्जा
शेख़-ए-कामिल को रहमत और हिदायत का असीम दरिया बताया गया है। वह कौसर के पानी की तरह पाक होते हैं। उनके पास बैठने वाला इंसान भी पाक और रौशन हो जाता है। लेकिन जो लोग उनसे जलन और हसद करते हैं, अल्लाह की रहमत उनसे रोक ली जाती है।
अहंकार और बुरी आदतों से बचाव
ख़ुद परस्ती (स्वयं को बड़ा मानना) इंसान को तकब्बुर (अहंकार) की ओर ले जाती है। यही सरकशी (विद्रोह) की जड़ होती है। लेकिन नेक लोगों के लिए अल्लाह तआला नापाक चीज़ों को भी पाक कर देता है। शेख़-ए-कामिल का नूर सूरज की शुआओं (किरणों) की तरह है, जो कभी नजासत (गंदगी) को बर्दाश्त नहीं करता।
हमें क्या सीख मिलती है?
इस वाकिए से हमें यह सीख मिलती है कि फ़क़ीर होना केवल गरीबी का नाम नहीं, बल्कि अल्लाह के साथ गहरा रिश्ता है। हमें अहंकार और बुरी आदतों से बचते हुए शेख़-ए-कामिल का अदब करना चाहिए। वही इंसान को राह-ए-हक़ पर चलाकर उसकी ज़िंदगी को रोशन करता है।