हदीस की असलियत और वली की करामात:
इस्लामी इतिहास ऐसे अनेक वाक़ियात से भरा हुआ है जिनसे हमें नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सच्चाई और अल्लाह के नज़दीकी बंदों का मक़ाम मालूम होता है। आज हम एक ऐसा वाक़िया पेश कर रहे हैं जिसमें एक वली और एक मोहद्दिस (हदीस के आलिम) के बीच दिलचस्प बातचीत सामने आती है।
वली और मोहद्दिस का वाक़िया
एक बार एक वली साहब एक मोहद्दिस की मजलिस में हाज़िर हुए। मोहद्दिस हदीस बयान कर रहे थे और पढ़ते हुए कहा:
“قال رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم” यानी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया।
इतना सुनते ही वह वली बोले: यह हदीस सही नहीं है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हरगिज़ ऐसा नहीं फ़रमाया।
मोहद्दिस की हैरानी
मोहद्दिस साहब हैरान हो गए और पूछा:
आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? और आपको कैसे मालूम कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐसा नहीं कहा?
वली साहब ने मुस्कुराकर कहा:
यह देखिए! नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आपके सर पर खड़े हैं और फ़रमा रहे हैं कि मैंने यह हदीस नहीं कही।
मोहद्दिस की आँखें खुलीं
मोहद्दिस उस वक़्त बिल्कुल दंग रह गए। वली साहब ने कहा:
क्या आप भी हज़रत को देखना चाहते हैं? तो लीजिए देख लीजिए।
जैसे ही मोहद्दिस ने ऊपर देखा, उन्हें हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ फ़रमा नज़र आए। यह उनके लिए ज़िंदगी का सबसे बड़ा सच साबित हुआ।
हमें क्या सीख मिलती है?
इस वाक़िए से हमें यह सिखने को मिलता है कि अल्लाह के नेक बंदों को अल्लाह तआला ख़ास इल्म और नूर से नवाज़ता है। उनकी रूहानियत इतनी ऊँची होती है कि वे हक़ और बातिल में फ़र्क कर सकते हैं। साथ ही, यह वाक़िया हमें बताता है कि हदीस शरीफ़ की असलियत बहुत अहम है और ग़लत बातों को नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मन्सूब करना सबसे बड़ा झूठ है।