अल्लाह की राह में सबसे बड़ी कुर्बानी:
इस्लामिक इतिहास में हज़रत इब्राहीम अ़लैहिस्सलाम और उनके प्यारे बेटे हज़रत इस्माईल अ़लैहिस्सलाम की कुर्बानी का वाक़िया सबसे अहम और इबरतनाक माना जाता है। यह घटना हमें अल्लाह की राह में सब्र, ईमान और इताअत (आज्ञापालन) की बेहतरीन मिसाल पेश करती है।
अल्लाह का हुक्म और इब्राहीम अ़लैहिस्सलाम का सपना
हज़रत इब्राहीम अ़लैहिस्सलाम ने एक रात ख्वाब में देखा कि ग़ैब से आवाज़ आ रही है:
ऐ इब्राहीम! तुम्हें अपने बेटे को अल्लाह की राह में कुर्बान करना है।
नबी का ख्वाब सच्चा होता है और वह अल्लाह की तरफ़ से वह़ी (इल्हाम) होता है। इसलिए हज़रत इब्राहीम ने इस हुक्म को पूरी तरह मानने का फैसला किया।
बेटे से बातचीत और हिम्मत
हज़रत इब्राहीम अपने छोटे बेटे हज़रत इस्माईल को साथ लेकर जंगल की तरफ़ गए। उन्होंने बेटे से कहा:
बेटा! अल्लाह का हुक्म है कि मैं तुम्हें उसकी राह में कुर्बान कर दूँ। तुम्हारी क्या राय है?
हज़रत इस्माईल ने फ़ौरन जवाब दिया:
अब्बा जान! जब अल्लाह की यही मर्ज़ी है तो मेरी मर्ज़ी का क्या सवाल। इंशा अल्लाह मैं सब्र करूँगा।
कुर्बानी का वक़्त
इब्राहीम अ़लैहिस्सलाम ने बेटे को जमीन पर माथे के बल लिटाया और उसकी गर्दन पर छुरी रखी। उन्होंने पूरी ताक़त से छुरी चलाई, मगर अल्लाह की रहमत से छुरी ने इस्माईल अ़लैहिस्सलाम को ज़रा भी चोट नहीं पहुँचाई।
उस वक़्त ग़ैब से आवाज़ आई:
ऐ इब्राहीम! तुमने हमारे हुक्म की पूरी तामील कर दी। यह इम्तिहान था और तुम इसमें कामयाब हुए।
असली कुर्बानी
अल्लाह ने इस्माईल अ़लैहिस्सलाम की जगह एक दुम्बा (मेंढा) भेजा और फरमाया कि इस्माईल की जगह इसे कुर्बान करो।
इस तरह दोनों बाप-बेटा अल्लाह की आज़माइश में कामयाब हुए और रहमत के हकदार बने।
हमें इस वाक़िए से क्या सीख मिलती है?
यह घटना हमें सिखाती है कि अल्लाह के हुक्म के सामने इंसान की इच्छा और मोहब्बत कोई मायने नहीं रखती। अल्लाह की राह में सब्र, कुर्बानी और पूर्ण आज्ञापालन ही सच्चा ईमान है। यही वजह है कि आज भी पूरी दुनिया में ईद-उल-अज़हा के मौके पर इसी कुर्बानी की याद ताज़ा की जाती है।