हज़रत इब्राहीम और नमरूद की आग का वाक़िया:
इस्लामी इतिहास के महत्वपूर्ण वाक़ियात में से एक हज़रत इब्राहीम अ़लैहिस्सलाम का वह किस्सा है जब ज़ालिम नमरूद ने आपको एक बड़ी आग में डालने का हुक्म दिया। नमरूद चाहता था कि अल्लाह के नबी को जला कर खत्म कर दे, लेकिन अल्लाह की हिफ़ाज़त और आपकी ईमानदारी ने इस वाक़िये को इंसानों के लिए रहनुमाई बना दिया।
जिब्रील अमीन की पेशकश
जब आपको आग में डाला जाने वाला था, जिब्रील अ़लैहिस्सलाम हाज़िर हुए और अर्ज़ किया:
या इब्राहीम! अल्लाह से दुआ कीजिए कि वह आपको इस आग से बचा ले।
इस पर हज़रत इब्राहीम ने जवाब दिया:
अपने जिस्म की हिफ़ाज़त के लिए मैं इतनी बुलंद हस्ती से इतनी छोटी सी दुआ क्यों करूँ? यह जिस्म उसी का दिया हुआ है, वह चाहे तो बचाए, चाहे तो आज़माए।
दिल की निस्बत अल्लाह से
जिब्रील ने फिर अर्ज़ किया: तो कम से कम अपने दिल की हिफ़ाज़त के लिए दुआ कीजिए।
हज़रत इब्राहीम ने फ़रमाया:
यह दिल उसी के लिए है और उसकी चीज़ है। वह चाहे तो इसमें सब्र डाले, चाहे तो इसमें ताक़त। उसकी मर्ज़ी के सामने मेरा कोई इख़्तियार नहीं।
अल्लाह पर पूरा भरोसा
फिर जिब्रील ने कहा: या इब्राहीम! यह बहुत बड़ी और तेज़ आग है।
आपने जवाब दिया:
ऐ जिब्रील! यह आग किसने जलाई?
जिब्रील ने कहा: नमरूद ने।आपने आगे पूछा: और नमरूद के दिल में यह ख्याल किसने डाला?
जिब्रील ने जवाब दिया: रब जलील ने।
तब हज़रत इब्राहीम ने फ़रमाया:
तो फिर उधर हुक्म जलील है और इधर रज़ा-ए-खलील है।
हमें इस वाक़िये से क्या सीख मिलती है?
यह वाक़िया हमें सिखाता है कि असली सहारा सिर्फ अल्लाह है। जब पूरी दुनिया खिलाफ हो जाए, तब भी अल्लाह अपने नेक बंदों की हिफ़ाज़त करता है। हज़रत इब्राहीम का सब्र, भरोसा और अल्लाह की रज़ा पर राज़ी रहना हमारे लिए एक मिसाल है।