हज़रत मूसा (अ.स.) का असा अजदहा बना

अल्लाह की क़ुदरत और फ़िरऔन की शिकस्त:

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को जब अल्लाह तआला ने नुबूवत के शरफ़ से नवाज़ा तो आपको फ़िरऔन के पास भेजा। आप फ़िरऔन से कहने लगे: ऐ फ़िरऔन! मैं अल्लाह का रसूल हूँ और हक़ व सच्चाई का पैग़ाम लेकर आया हूँ। तू अपनी ख़ुदाई का दावा छोड़ दे और सिर्फ़ एक अल्लाह की इबादत कर।

फ़िरऔन ने घमंड और अकड़ में जवाब दिया: अगर तुम अल्लाह के रसूल हो तो मुझे कोई निशानी दिखाओ।

असा का अजूबा

हज़रत मूसा (अ.स.) ने अपना असा (लाठी) ज़मीन पर डाला। अल्लाह के हुक्म से वह असा एक बड़ा अजदहा (विशाल साँप) बन गया। उसका रंग ज़र्द (पीला) था, मुँह पूरी तरह खुला हुआ, और वह अपनी पूँछ पर खड़ा होकर एक मील ऊँचाई तक पहुँच गया।

एक जबड़ा ज़मीन पर था और दूसरा क़िले की दीवार पर। जब उस अजदहे ने फ़िरऔन की तरफ़ रुख़ किया तो फ़िरऔन अपने तख़्त से कूदकर भाग गया।

लोगों का हाल

जब अजदहे ने लोगों की तरफ़ रुख़ किया तो हर तरफ़ भगदड़ मच गई। हज़ारों लोग भागते हुए आपस में कुचल गए और बहुत से लोग वहीं मर गए। यह नज़ारा देख कर फ़िरऔन का दिल डर से काँप उठा और वह अपने महल में जाकर चिल्लाने लगा: ऐ मूसा! उस अल्लाह की क़सम, जिसने तुम्हें रसूल बनाया है, इस अजदहे को रोक लो।

अजदहा फिर से असा बन गया

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अजदहे को हाथ में उठा लिया और वह फिर से अपने हाल पर यानी असा बन गया। फ़िरऔन की जान में जान आई, लेकिन उसके दिल की हठ और घमंड बरकरार रहा।

इस वाक़िए से सीख

इस इस्लामी वाक़िया से हमें यह सिख मिलती है कि अल्लाह की क़ुदरत के सामने किसी भी हुकूमत, ताक़त या झूठे दावे की कोई हैसियत नहीं है। इंसान चाहे कितना भी बड़ा बादशाह क्यों न बन जाए, अल्लाह के हुक्म और उसकी निशानियों के आगे हमेशा असहाय और कमज़ोर साबित होता है।

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