हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और फ़िरऔन के बावर्ची का दर्दनाक वाक़िया:
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम जब 30 वर्ष के हुए तो एक दिन फ़िरऔन के महल से निकलकर शहर की तरफ़ गए। शहर में उन्होंने दो आदमियों को आपस में झगड़ते हुए देखा। उनमें से एक फ़िरऔन का बावर्ची (रसोइया) था और दूसरा बनी इस्राईल से, यानी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की क़ौम का एक आदमी था।
फ़िरऔन का बावर्ची लकड़ियों का बड़ा गट्ठर उस ग़रीब आदमी पर लाद रहा था और उसे हुक्म दे रहा था कि वह लकड़ियाँ महल तक पहुंचाए। यह नज़ारा देखकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का दिल पसीज गया। उन्होंने बावर्ची से कहा:
इस ग़रीब आदमी पर ज़ुल्म मत करो।
लेकिन बावर्ची अपनी ज़िद पर अड़ा रहा और बदज़बानी करने लगा। उसकी सख़्ती और ज़ुल्म देखकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को ग़ुस्सा आया और आपने उसे एक मुक्का मारा।
उस मुक्के की ताक़त इतनी ज़्यादा थी कि उसी एक वार से फ़िरऔन का बावर्ची वहीं गिर पड़ा और उसकी मौत हो गई। यह नज़ारा देख कर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम परेशान हो गए क्योंकि उनका मक़सद उसे मारना नहीं बल्कि रोकना था।
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़ौरन अल्लाह से दुआ की:
ऐ मेरे रब! यह काम मेरी ग़लती से हुआ, तू मुझे माफ़ फरमा।
अल्लाह तआला ने उनकी दुआ क़ुबूल की और उन्हें माफ़ फरमा दिया। लेकिन यह खबर जल्द ही पूरे शहर में फैल गई कि फ़िरऔन का बावर्ची मारा गया है और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम उस वाक़िये में शामिल थे।
यह वाक़िया हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की ज़िन्दगी का एक अहम मोड़ था। इस घटना के बाद फ़िरऔन और उसके दरबारी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के खिलाफ़ हो गए और उनके लिए मुश्किलात का दरवाज़ा खुल गया।
हमें इस वाक़िए से क्या सीख मिलती है?
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि ज़ुल्म और नाइंसाफ़ी कभी क़बूल नहीं की जाती। अगर कोई ग़रीब या मज़लूम इंसान परेशान किया जा रहा हो, तो उसकी मदद करना ईमानदार और नेक इंसान की पहचान है। लेकिन साथ ही, हमें यह भी सीखना चाहिए कि ग़ुस्से में इंसान को अपने जज़्बात पर क़ाबू रखना चाहिए, ताकि कोई नापसंद नतीजा सामने न आए।