जब अल्लाह ने हज़रत मूसा से शिफ़ा बख़्शी:
फ़िरऔन की एक बेटी थी जिसे फिल्बहरी (एक गंभीर त्वचा रोग) हो गया था। फ़िरऔन ने उसका इलाज बड़े-बड़े हकीमों और वैद्यों से करवाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। बीमारी जस की तस रही। आखिरकार उसने अपने दरबार के काहिनों (जो भविष्यवाणी करने वाले थे) से पूछा कि इसका इलाज कहाँ है। उन्होंने बताया कि इसकी शिफ़ा (इलाज) दरिया से जुड़ेगी।
एक दिन फ़िरऔन, उसकी बीवी आसिया और उसकी बेटी दरिया किनारे बैठे थे। उसी वक़्त दरिया में एक संदूक बहता हुआ आया। जब वह संदूक किनारे लाया गया और खोला गया तो उसमें एक नूरानी बच्चा दिखाई दिया। वह बच्चा कोई और नहीं बल्कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम थे, जो अपने छोटे-छोटे अंगूठे चूस रहे थे।
फ़िरऔन की बीवी आसिया ने जब इस मासूम बच्चे को देखा तो उसका दिल उनसे मोहब्बत से भर गया। उसने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को उठा लिया और गोद में ले लिया। उनकी मासूमियत और नूरानी सूरत देखकर फ़िरऔन की बेटी भी बहुत प्रभावित हुई।
फ़िरऔन की बेटी ने मोहब्बत में आकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के मुबारक मुँह की लार अपने शरीर पर लगा ली। अल्लाह की रहमत से उसी वक़्त उसकी फिल्बहरी की बीमारी हमेशा के लिए खत्म हो गई।
हमें इस वाक़िए से क्या सीख मिलती है?
इस वाक़िए से हमें यह सीख मिलती है कि अल्लाह तआला की रहमत और बरकत के आगे कोई बीमारी और मुश्किल ठहर नहीं सकती। यह भी मालूम होता है कि अल्लाह अपने नबी और रसूल को जन्म से ही बरकत और रहमत का ज़रिया बनाता है।