हज़रत उमर रज़ि. के इस्लाम लाने से फैला इस्लाम का रोशन पैगाम

जब इस्लाम को मिला उमर रज़ि. जैसा साथी

हज़रत उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु का इस्लाम कबूल करना इस्लामी इतिहास का एक ऐसा लम्हा है जिसने इस्लाम को ज़मीन पर मज़बूती दी और मुसलमानों को हिम्मत दी कि अब वे अपना दीन छिपा कर न रखें।

नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर जब हज़रत उमर ईमान लाए, तो इस्लाम की इज्ज़त और ताकत में जबरदस्त इज़ाफा हो गया। उस समय मुसलमान बहुत कम थे और डर के मारे अपना दीन छुपाकर इबादत करते थे। मगर अब हालात बदलने वाले थे।

हम क्यों छिपाएँ दीन-ए-हक?

या रसूल अल्लाह! जब हम हक़ पर हैं और वो (काफिर) बातिल पर, तो हम अपने दीन को क्यों छुपाएं? अब मैं हर उस जगह जाऊँगा जहाँ पहले कुफ्र के लिए बैठा करता था, लेकिन अब इस्लाम के लिए बैठूंगा।

हज़रत उमर रज़ि. ने काबा का तवाफ किया और खुलेआम तौहीद का एलान किया। जब मक्का के काफ़िरों ने उन्हें घेर लिया, तो उन्होंने अकेले ही मुकाबला किया। एक शख्स को गिराकर उसकी आंखों में अपनी उंगलियां डाल दीं, जिससे बाकी सब डर कर भाग गए।

जो विरोध करेगा, मेरी तलवार उसका फैसला करेगी”

इसके बाद उन्होंने हर मजलिस में इस्लाम का एलान किया और निडरता से कहा:
अब कोई ऐसी मजलिस नहीं बची जहाँ मैंने इस्लाम का एलान न किया हो।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस बात से बहुत खुश हुए और आपने काबा की तरफ रुख किया। आगे-आगे हज़रत उमर, पीछे हज़रत हम्ज़ा और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ मुसलमानों ने पहली बार खुलेआम नमाज़ पढ़ी।

हमें क्या सीख मिलती है?

इस वाकये से हमें कई प्रेरणाएँ मिलती हैं:

  • एक सच्चे मोमिन का हौसला पूरी उम्मत के लिए ताक़त बन सकता है।

  • दीन की सच्चाई को कभी छिपाना नहीं चाहिए।

  • हज़रत उमर जैसे लीडर, जो दीन की हिफाज़त के लिए खड़े हों, उम्मत की ज़रूरत हैं।

अगर आज भी हम अपने ईमान को मजबूती से पकड़ें और दीन के लिए आवाज़ उठाएँ, तो इस्लाम की रौशनी हर तरफ फैलेगी।

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