हज़रत यूसुफ़ और भाइयों की साज़िश:
हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाइयों के दिल में आपके प्रति ईर्ष्या और जलन बढ़ती जा रही थी। उन्होंने एक दिन तय किया कि यूसुफ़ को रास्ते से हटाना ही होगा। उन्होंने योजना बनाई और यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को जंगल में ले जाकर एक गहरे कुएँ में डाल दिया।
जब उन्होंने यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को कुएँ में फेंका, तो आपके बदन से क़मीज़ (कपड़ा) उतार लिया। फिर उन्होंने उस क़मीज़ को एक बकरी के खून में डुबो दिया, ताकि घर जाकर अपने पिता हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम को यह दिखा सकें कि यूसुफ़ को भेड़िये ने खा लिया।
जब वे घर लौटे और मकान के करीब पहुँचे, तो उन्होंने रोना शुरू कर दिया। हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम ने उन्हें रोते हुए देखा और पूछा – मेरे बेटों, क्या हुआ? और बताओ, यूसुफ़ कहाँ है?
वे रोते हुए बोले – अब्बा जान, हम सब आपस में दौड़ लगा रहे थे कि कौन सबसे आगे निकलता है। यूसुफ़ को हमने अपने सामान के पास अकेला छोड़ दिया। तभी एक भेड़िया आया और उसे खा गया। यह देखिए, उसकी खून-लथपथ क़मीज़।
लेकिन हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम ने उनकी बात पर यक़ीन नहीं किया। उन्होंने समझ लिया कि यह उनके दिलों की गढ़ी हुई कहानी है। उन्होंने कहा – तुम्हारे दिलों ने एक बात बना ली है, अच्छा, मैं सब्र करूँगा और इस मामले का फैसला अल्लाह से चाहूँगा।
यह घटना इस्लामी इतिहास का एक महत्वपूर्ण वाक़िया है, जिसमें हमें सब्र, अल्लाह पर भरोसा और धोखे के अंजाम का सबक मिलता है।
हमें इस कहानी से क्या सीख मिलती है
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ईर्ष्या इंसान को गलत रास्ते पर ले जाती है।
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झूठ बोलकर सच्चाई छुपाना अल्लाह को पसंद नहीं।
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मुश्किल वक्त में सब्र और अल्लाह पर भरोसा सबसे बड़ा सहारा है।