जब पूरा मिस्र हज़रत यूसुफ़ अ.स. को देखने उमड़ पड़ा:
हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाइयों ने उन्हें एक अंधेरे कुएं में फेंक दिया। लेकिन अल्लाह ने उनकी हिफ़ाज़त की। कुछ समय बाद एक खुशकिस्मत क़ाफ़िला वहाँ से गुज़रा। उन्होंने कुएं से पानी निकालने के लिए बाल्टी डाली, और जब बाल्टी ऊपर आई तो उसमें हज़रत यूसुफ़ अ.स. मौजूद थे। क़ाफ़िले वालों की खुशी का ठिकाना न रहा।
यह क़ाफ़िला उन्हें अपने साथ मिस्र ले आया। जब मिस्र में उनके आने की खबर फैली, तो सुबह-सुबह ही लोग क़ाफ़िले के सरदार के घर पहुंचने लगे। लोग कहने लगे कि हम उस कनानी ग़ुलाम (यूसुफ़ अ.स.) की ज़ियारत करना चाहते हैं।
क़ाफ़िले के सरदार ने ऐलान किया – जो भी उन्हें देखना चाहता है, वह एक अशरफ़ी (सोने का सिक्का) दे। लोगों ने बिना झिझक यह शर्त मान ली। दरवाज़ा खोला गया, और आंगन में हज़रत यूसुफ़ अ.स. को एक कुर्सी पर बिठाया गया। लोग एक-एक अशरफ़ी उनके पैरों में रखकर दीदार करते रहे।
सिर्फ दो दिनों में ही हज़ारों अशरफ़ियाँ जमा हो गईं। तीसरे दिन क़ाफ़िले के सरदार ने नया ऐलान किया – जो भी इस कनानी ग़ुलाम को खरीदना चाहता है, वह आज मिस्र के बाज़ार में आए।
इस ऐलान के बाद पूरा मिस्र उमड़ पड़ा। पर्दा-नशीन औरतें, बूढ़े इबादतगुज़ार, और यहाँ तक कि घर से न निकलने वाले लोग भी बाज़ार में आ गए। लोग सिर्फ हज़रत यूसुफ़ अ.स. की एक झलक पाने को बेक़रार थे।
आख़िरकार, खुद अज़ीज़-ए-मिस्र (मिस्र के वज़ीर) भी शाही ख़ज़ाना लेकर हज़रत यूसुफ़ अ.स. को खरीदने बाज़ार में पहुंच गए।
हमें इस वाक़िए से क्या सीख मिलती है
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अल्लाह की मदद सबसे कठिन हालात में भी मिलती है।
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सच्चा हुस्न और अच्छाई लोगों को अपनी ओर खींच लेती है।
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अल्लाह जिसको इज़्ज़त देना चाहे, उसे कोई रोक नहीं सकता।