दुनिया की सजावट बनाम इल्म-ए-नबूवत:
इंसान जब अपनी अक़्ल, ज़हानत और चालाकी पर घमंड करता है तो वह असली इल्म से, यानी इल्म-ए-नबूवत से महरूम रह जाता है। उसे लगता है कि उसकी सोच और उसके बनाए हुए तसव्वुर (कल्पना) ही सब कुछ हैं। लेकिन हक़ीक़त यह है कि ऐसे धोखे में जीने वाला शख्स आख़िरकार पछतावे का शिकार होता है।
दुनियावी धोक़े और असली नुक़सान
जब इंसान अपने वक्त को सिर्फ़ दुनियावी साज-सज्जा, मकान की खूबसूरती और ज़ाहरी ज़िंदगी को बेहतर बनाने में खर्च करता है, तो वह उस असली ख़ज़ाने से वंचित हो जाता है जो उसके लिए सबसे कीमती था। यह ख़ज़ाना है इल्म-ए-नबूवत और रूहानी हिदायत।
आखिर में वह कहता है:
हाय! काश मैं इस ख़ज़ाने को पा लेता, लेकिन मैंने अपनी ज़िंदगी नक़्शो-निगार में गँवा दी।
असली सफलता का रास्ता
इस्लाम यह सिखाता है कि इंसान की अक़्ल तब तक मुकम्मल नहीं हो सकती जब तक वह नबियों के इल्म से जुड़ी न हो। जो लोग सिर्फ़ अपनी अक़्ल पर भरोसा करते हैं, वे गुमराही में चले जाते हैं। असली कामयाबी तब है जब इंसान अपनी अक़्ल और मेहनत को अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हिदायत के मुताबिक इस्तेमाल करे।
हमें क्या सीख मिलती है?
इस वाक़िए से हमें यह सीख मिलती है कि इंसान को सिर्फ़ अपनी अक़्ल और ज़हानत पर घमंड नहीं करना चाहिए। असली हिदायत नबियों के इल्म में है। अगर हम दुनियावी सजावट और दिखावे में उलझ गए, तो आखिरकार पछताना पड़ेगा। हमें चाहिए कि इल्म-ए-नबूवत और अल्लाह की राह को अपनाएँ, क्योंकि वही असली ख़ज़ाना है।